Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
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प्रतिपादन करते हैं, जिनका तथा अन्य दर्शनों के सिद्धान्तों का विस्तृत विवरण दिया जा चुका है। मानव धर्म के सिद्धान्तों में संकुचितता के स्थान पर व्यापकता व उदारता तथा कट्टरता के स्थान पर विवेकमय ज्ञान और व्यक्ति पूजा के स्थान पर गुणपूजा को महत्ता मिली हुई होती है । रत्न त्रय के संदर्भ में चरित्र का जो महात्म्य जैन दर्शन में वर्णित है, वह अनुपम है। तदनुसार सत्चारित्र्य के संस्कार आदि बाल्यकाल से देने दिलाने की जीवनशैली बने तो उन संस्कारों के सामाजिक एवं राष्ट्रीय विस्तार में कठिनाई नहीं होगी। फिर भी चरित्र निर्माण का प्रयास आवश्यकतानुसार किसी भी आयु में किया जाना समुचित ही होगा। अतः समग्र चरित्र निर्माण का यह अभियान किसी एक या खास वर्ग, क्षेत्र या उद्देश्य तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण के साथ यथासाध्य उसे विस्तृत क्षेत्र में तथा विभिन्न समुदायों में और मुख्य रूप से जैन समाज के सकल क्षेत्र में चलाया जाएगा ताकि सार्वजनिन चरित्र का निर्माण हो सके तथा चरित्र विकास का मार्ग बाधारहित बनाया जा सके । किन्तु यह जैन समाज तक भी सीमित नहीं रहेगा, इसमें किसी भी धर्म, वर्ण या विश्वास के व्यक्तियों का प्रवेश भी स्वीकार्य होगा। इसका व्यापक क्षेत्र पूरा मानव समाज ही माना जाएगा। अभियान के राष्ट्रस्तरीय उद्देश्यों की अर्थवत्ता पर एक विहंगम दृष्टि :
चरित्र निर्माण अभियान एक बहुउद्देश्यीय एवं बहुआयामी अभियान है तथा उसका कार्यक्षेत्र प्रगति के साथ सम्पूर्ण विश्व तक विस्तृत बनाया जा सकता है। फिलहाल जो अभियान चलाने की योजना है, वह अपने देश भारत तक सीमित है । इस दृष्टि से अभी इस अभियान के राष्ट्रस्तरीय उद्देश्यों का निर्धारण किया गया है, जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
1. पर्यावरण संरक्षण और सूक्ष्मजीव रक्षण के प्रति दयालुता की भावनाएं जागृत करना ।
2. धार्मिक जागरण तथा युवा नेतृत्व को प्रमुखता देने की दृष्टि से एक युवा शाखा का गठन करना और युवाओं को उत्साहपूर्वक कार्य करने हेतु प्रोत्साहन देना ।
3. चरित्र निर्माण को व्यापक रूप से लोकप्रिय बनाने के लिए गोष्ठियों भाषणमालाओं तथा चर्चाबहस के सब ओर कार्यक्रम आयोजित करना और जन-जन को व्यसनों, दुर्गुणों तथा असमानता से छुटकारा दिलाने की प्रवृत्तियों का संचालन करना ।
4. आपदाग्रस्त लोगों तथा दलित- पतित भाई-बहनों को प्रत्येक प्रकार की संभव सहायता पहुंचाना।
5. रक्तदान तथा निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण का आयोजना करना ।
6. मरणोपरान्त नेत्रदान करने की प्रवृत्ति लोगों में जगाना और उन्हें प्रोत्साहित करना ।
7. जनता को दहेज देने तथा दहेज की सामग्री का प्रदर्शन करने की कुप्रथा को तोड़ने हेतु जागृत करना तथा यथावसर यथोचित विरोध करना ।
8. आत्महत्या एवं जीवहत्या के विरुद्ध जनता में जागृति फैलाना तथा इस उद्देश्य से आन्दोलन आदि चलाना । 9. बाल-विवाह तथा मृत्युभोज की घातक कुप्रथाओं को छोड़ने के लिए भी लोगों को समझाना तथा आन्दोलन चलाना ।