Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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समूची समस्याओं का हल होगा मनुष्य की चाल व उसके चलन से
बनोगे और वह आदर्श तुम्हारा प्रकाश स्तम्भ होगा। तब तुम्हें उस आदर्श की सही देखरेख, रखवाली और सुरक्षा करनी होगी (3/60-61 चक्कवत्ती सिंहनद सुतन्त)।" यह चाल-चलन मानव मार्ग का प्रतीक हो और समूची समस्याओं का निर्णायक :
नये मानव चरित्र को प्रोत्साहित करने वाले इस चाल-चलन से दो अपेक्षाएं हैं-एक तो यह ऐसा सुरक्षा कवच सिद्ध हो जिससे समूची समस्याओं के संबंध में समय-समय पर समुचित निर्णय लिये जा सके तथा व्यवस्था की सुचारूता बनी रहे तथा दूसरा यह चाल-चलन शुद्ध रूप से मानव-मार्ग का प्रतीक होना चाहिए जिसका आने वाली पीढ़ियां निश्चिन्तता पूर्वक अनुसरण कर सके। यह चालचलन सारे विश्व का चाल-चलन बन जाए।
अहिंसक जीवनशैली की मानव मार्ग की प्रतीकात्मकता से संबंधित कुछ बिन्दुओं पर विचार करें, जो सामान्य रूप से बाह्य एवं आभ्यन्तर-सभी तत्त्वों को अपने में समेटते हैं___ 1. अपने आपको बनाने का मार्ग : आधुनिक युग में सबसे ज्यादा उपेक्षा इस मार्ग की हुई है जबकि यह कार्य सबसे पहले होना चाहिए। अपने आपको बनाने का मार्ग है। व्यक्ति के चरित्र निर्माण तथा विकास का मार्ग। जिसके हाथ खून से भरे हुए हो-उसके हाथों में प्राणियों की रक्षा का भार सौंपा जाएगा तो क्या होगा? रक्षा की जगह हिंसा का क्षेत्र बढ़ जाएगा और खून चारों ओर फैल जाएगा। क्या मानव चरित्र के निर्माण के बिना सब ओर जो विशाल पैमाने पर भौतिक निर्माण हुआ है-उसकी क्या दशा है? सभी जानते हैं कि विकास का अनुपात बहुत कम और भ्रष्टाचार का दैत्य महादैत्य बन गया है। एक पूर्व प्रधानमंत्री के शब्दों में-भारत में विकास पर जो खर्च किया जाता है उसके प्रति रूपया सौ पैसों में सिर्फ पन्द्रह पैसे ही विकास पर खर्च होता है, बाकी पिच्यासी पैसे भ्रष्टाचार के ऊपर में समा जाते हैं। और विकास के नाम आज तक भी जो खर्च हुआ वह अरबोंखरबों से भी बहुत अधिक होगा। इससे व्यक्ति चरित्र के गठन का प्रश्न अहम बन जाता है। मनुष्य का निर्माण नहीं तो समझिए कि सही निर्माण कुछ भी नहीं। ___ 2. अपने व परिवार के निर्वाह हेतु सही साधन अपनाने का मार्ग : जब व्यक्ति चरित्रनिष्ठ होगा, चरित्रशील बनेगा, तब वह अपने परिवार को भी प्रभावित करेगा। यह शुभ प्रवाह व्यावहारिक रूप से धनार्जन की नीति एवं संस्कार निर्माण पर सबसे पहले पड़ेगा। वह व्यक्ति तथा उसका परिवार निर्वाह हेतु सही साधन ही अपनाएंगे। धर्नाजन का तरीका यानी धंधा नैतिक होगा तो व्यय किया जाने वाला धन भी संविभाग तथा मर्यादा पालन पर आधारित होगा। जीवन निर्वाह में जब पूरी तरह नैतिकता होगी तो उस परिवार में नये आने वाले मेहमान भी नैतिक संस्कारों से युक्त होंगेचरित्रनिष्ठा का बीज गर्भ में ही उनमें आरोपित हो जाएगा। वैसा भविष्य कितना सुन्दर होगा-सहज ही में सोचा जा सकता है। ____ 3. अपने आपको समझने का मार्ग : जब अपने आपको बना लें, अपना चरित्र विकसित कर लें तब आप अपने को श्रेष्ठ कर्ता बना लेते हैं किन्तु अपना कृतित्व कितना सफल होता है-इसका अंकन करने के लिए चरित्रशील व्यक्ति को दृष्टा भी बनना चाहिए-दृष्टा बन कर ही वह अपने
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