Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
कोशा प्रतिदिन कुछ न कुछ ऐसा प्रेमाभिनय करती रही कि स्थूलिभद्र पहले की तरह ही उस पर मोहित हो जाए और उसके प्रेम पाश में बंध जाए। स्थलिभद्र के लिए भी वह किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं था। उनका संकल्प बार-बार अग्नि में गिरने और जलने को होता, किन्तु अपने आत्मबल के प्रभाव से उसे जलने नहीं देते। यह क्रम दो माह तक चलता रहा, तब कहीं जाकर कोशा का आवेग शान्त हुआ और स्थूलिभद्र के संकल्प की अग्नि परीक्षा पूर्ण हुई। कोशा ने मुनि स्थूलिभद्र के नये रूप को समझा, राग के रास्ते से हट विराग की पहचान की और तब वह भी विराग के धरातल पर मुनि स्थूलिभद्र के समकक्ष खड़ी हो गई। यह अद्भुत परिवर्तन संकल्प बल का चमत्कार ही था। संकल्प सुदृढ़ हो तो विचार क्या, कल्पना भी साकार हो जाती है : ___ संकल्प शक्ति की कोई तुलना नहीं। अपने भीतर ऐसी शक्ति जगाना अवश्य ही एक तपस्या जैसा है किन्तु जीवन के कण-कण में संकल्प शक्ति जो एकरूप होकर समा जाए तो वह क्या नहीं कर सकती है-यह सोचने की बात हो सकती है, लेकिन वह कुछ भी कर सकती है-इसकी कोई आशंका नहीं बचती। संकल्प शक्ति सुदृढ़ हो जाए तो विचार क्या, कल्पना तक सरलता से साकार हो जाती है तभी तो उपनिषद में प्रार्थना का एक सूत्र आता है-मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला बने। अपेक्षित यही होता है कि संकल्प को इतना सुदृढ बना लें कि जैसे उसके लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया हो और वह संकल्प मनोभावों के साथ दूध-शक्कर की तरह घुल मिल गया हो। फिर उस संकल्प के अनुरूप कार्यारंभ कर दें और उसकी सम्पूर्णता तक डटे रहें-संकल्प अवश्यमेव सिद्ध हो जाएगा।
संकल्पता का अर्थ है मनोभावों के साथ धृत संकल्प की एकरूपता, एकात्मकता और एकाग्रता तथा जब ऐसी मन:स्थिति का निर्माण हो जाता है तो वह संकल्प सिद्ध न हो-ऐसा कभी हो ही नहीं सकता। संकल्प को पुष्ट बनाने में तीन आन्तरिक शक्तियां काम करती हैं-1. इच्छाशक्ति-वह इतनी बलवती हो जाए कि संकल्प सिद्धि तक उस बल में तनिक भी मन्दता न आवे। आज राजनेताओं के लिए कहा जाता है कि यदि वे अपनी इच्छाशक्ति बना लें तो कौनसी ऐसी समस्या है जिसका सत्ता की सहायता से समाधान न किया जा सके। इच्छाशक्ति (विल पॉवर) का प्रभाव अपरिमित होता है। 2. एकाग्र साधना-बिखरे मन से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है-ऐसे में मन हमेशा भ्रमित रहता है। किसी भी साध्य को पाना है तो उसके लिए एकाग्र साधना अनिवार्य है। एकाग्र का अर्थ है कि अग्र यानी अपने सामने सिर्फ एक को ही रखो-एक के सिवाय अन्य कुछ भी दृष्टि में ही न रहे। एक है, एक ही दिखाई देता है और एक को ही पाना है-यह होती है एकाग्रता की अवस्था। संकल्प सिद्धि के लिए एकाग्रता होनी ही चाहिए। 3. विचार-सामर्थ्य-एकाग्रता के साथ वैचारिकता बनी रहनी चाहिए। यह न हो कि एकाग्रता का सही प्रयोग न करते हुए अपने मन-मानस को कुन्द बना लिया जा अथवा विचारहीनता की स्थिति आ जाए। विचार नहीं रहेगा तो विवेक नहीं रहेगा और बिना विवेक के संकल्प किस आधार पर टिकेगा? ये तीनों शक्तियां संकल्प की सुदृढ़ता के लिए रामबाण औषधि का काम करती है। __संकल्प को पष्ट करने के लिए प्रयोजन और संकल्प के अन्तर को भी समझना चाहिए। यह प्राकृतिक नियम है कि कोई भी कार्य बिना प्रयोजन के नहीं किया जाता है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक
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