Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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चरित्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने हेतु सद्भाव जरूरी
व्यवस्था का सवाल है, बंटने या बांटने के पीछे न व्यवस्थागत उद्देश्य है और न कोई अन्य सार्थक उद्देश्य। वहां देखें तो लगेगा कि भिन्न-भिन्न प्रकार के निहित स्वार्थियों का जाल बिछा हुआ है जिसमें फंस कर मनुष्य खण्ड-खण्ड होता जा रहा है और खंड-खंड भी ऐसा कि प्रत्येक खंड दूसरे खंड से हर वक्त तनाव के मूड में, दो-दो हाथ करने को तैयार और स्थायी वैर मुद्रा में। मतलब यह कि सारा समाज एक तार-तार चादर का रूप बन गया है
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वर्तमान की प्रधान समस्या यही है कि इन परस्पर संघर्षशील टुकडों या घेरों के तालमेल का ढंग किस प्रकार बिठावें कि ये एक-दूसरे के सहायक और पूरक बनते हुए मानव जाति की एकता के आदर्श की दिशा में गति कर सके ? एक विशाल महल में समझें कि सैकड़ों कमरें और एक-एक कमरे में कई खिड़कियां हो तथा सारे कमरों में लोग रहते हो । कल्पना करें कि सब कमरों और खिड़कियों के दरवाजे हमेशा बन्द रहते हो तो रहने वालों की मानसिकता कैसी बनेगी? साफ हवारोशनी नहीं, बन्द कमरे के भीतर का एक मात्र उबाऊ दृश्य, मुखिया की धौंसपट्टी में दिमाग का भी दरवाजा बंद, अंधा और चिड़चिड़ा स्वभाव सो कभी कमरों के दरवाजें खुले भी जड़मति नादान बाहर आते ही आपस में उलझ पड़ते हैं - वाद विवाद से हाथापाई की हिंसा तक पहुंच जाते हैं। इसके विपरीत यदि अलग-अलग कमरों में रहते हुए भी सब लोग कमरे-खिड़कियां खुली रखते हों, आपस में बार-बार मिलते-जुलते हों, एक दूसरे के दुःख-सुख में सहभागी बनते हों, मुस्कुराहटों का लेन-देन करते हों और एक-दूसरे के कमरों में आते जाते, खाते खिलाते, हंसते- बतियाते हों तो वह विविधता भी मूलत: एकता का स्वरूप बन जाएगी।
मानव जाति की वर्तमान समस्या को इसी रंग ढंग से सुधारने और सुलझाने की जरूरत है। किन्तु समस्या साधारण नहीं है, व्यापक और विशाल भी है तो कठिन और जटिल भी बन्द कमरों में रहते-रहते लोगों के मिजाज जो बुरी तरह बिगड़े हुए हैं उन्हें समरस बनाने का सवाल है और उससे भी पहले यह सवाल है कि लोगों को नादानी में ढकेल कर जो धूर्त लोग बहुसंख्यक लोगों को भेडों की तरह हंकालते आए हैं, उन्हें बदला जाए। ये धूर्त एक भांति के नहीं हैं-महल के हर कमरे में बैठे हुए हैं और इन्होंने हर छल बल से लोगों को अपने पांवों तले दबा रखा है। काम बहुत बड़ा है और बड़े सवालों के जवाब भी बड़े ही खोजने होंगे। बहुसंख्यक लोगों के दिलों में अज्ञान बैठा है तो कुछ लोगों के दिलों में शैतान और इन दोनों प्रकार के दिलों को बदल कर उनमें भगवान् को बिठाना है सो जिनके दिलों में भगवान् बैठा और जगा हुआ है, वे ही इस काम के लिए आगे आ सकते हैं। इनके पास भी कोई सत्ता, धन या दूसरी पाशविक ताकत नहीं होगी, सिर्फ दिल में बैठे भगवान् की ही ताकत होगी, लेकिन आत्मविश्वास और आत्मबल से सब कुछ साध्य हो सकता है। इस विशाल परिवर्तन का एक मात्र माध्यम बन सकता है, विशाल पैमाने पर चरित्र निर्माण एवं चरित्र विकास । यह महद् कार्य छोटे स्तर से शुरू हो, पर यही चरित्र निर्माण व्यक्ति से लेकर विश्वस्तरीय स्वरूप ग्रहण करके व्यापक परिवर्तन का कारक बन सकता है।
सीमा रहित विश्व के निर्माण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की दिशा :
आज विश्व की सीमाएं हैं अलग-अलग राष्ट्रों के रूप में। वैसे विश्व सरकार के अभाव में
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