Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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चरित्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने हेतु सद्भाव जरूरी
5. शब्द नय : काल, कारक, लिंग संख्या, पुरुष, उपसर्ग आदि के भेद से शब्दों में अर्थ-भेद मानना। __ जैसे मूल तट शब्द को भी यह नय लिंग भेद-तट, तरी, तटम् को अलग-अलग मानता है। 6. समाभिरूढ़ नय : पर्यायवाची शब्दों में भी निरुक्ति के भेद से भिन्न अर्थ मानने वाला। इन्द्र और
पुरन्दर पर्यायवाची शब्द हैं किन्तु इनको भी यह नय अर्थ भेद से अलग मानता है। विशेषता में भी
स्वरूप का इस रूप में केन्द्रित अर्थ लिया जाता है। 7. एवंभूत नय : पदार्थ जिस समय अपनी अर्थक्रिया में प्रवृत्त हो उसी समय उसे उस शब्द का
वाच्य मानना-ऐसी निश्चय दृष्टि वाला यह नय है। इन्द्र जब नगर का विनाश कर रहा हो तब ही उसे पुरन्दर कहा जाए। अन्य समय में नहीं।
नयवाद का सार यह है कि किसी भी वस्तु स्वरूप को उसके सभी पहलुओं से समझा जाए क्योंकि सत्य अनन्त पहलुओं वाला होता है, उसे किसी एक पहलू से समझा नहीं जा सकता है। एकांगी दृष्टि वस्तु के सत्य स्वरूप को दिखाने में असमर्थ है। नयवाद के माध्यम से वस्तु स्वरूप पर विचार करने से समस्त विवादों का समाधान हो जाता है। आग्रहवाद या हठवाद या एकान्त वाद असत्य के अंग हैं, जबकि अनाग्रह 'स्यात्' के साथ अनेकान्त है और इसकी आधारशिला है नय। नय की पृष्ठभूमि में काम करती है सहिष्णुता और जिज्ञासा, ये दोनों वृत्तियां ऐसी है जो विवाद या संघर्ष को पैदा ही नहीं होने देती है। आग्रह और हठ से दूर रहने के कारण अन्य सभी विचारों के प्रति सम्मान का भाव रहता है और साहचर्यता की प्रवृत्ति पुष्ट होती है। नयवाद एक प्रकार से उन विचारकों के लिए एक चुनौती है जो अपनी ही विचारधारा या व्यवस्था को ही पूर्ण सर्वव्यापक मानते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि वास्तविकता बहुत जटिल होती है और उसे सामान्य-सी परिभाषा से स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। सभी पहलुओं को विधिवत् समझ लेने पर ही वास्तविकता का स्वरूप प्रकट हो सकता है।
यह विवेचन विचार समन्वय से विचार साम्यता का पथ प्रदर्शन करता है। सभी विचारों में कुछ न कुछ अच्छापन होता है, किन्तु किसी एक विचार को ही पूरी तरह अच्छा बता कर उसे ही मान लेने का जो हठाग्रह किया जाता है, वही मनोवृत्ति विचार संघर्ष पैदा करती है। यदि हठाग्रह छूट जाए
और सभी विचारधाराओं पर सत्य शोध की दृष्टि से चर्चा हो तो सही निष्कर्ष सामने आ सकते हैं, ऐसा रास्ता मिल सकता है, जिस पर सभी साथ-साथ चलने को राजी हो सके। विश्व की एकता पाने का जब लक्ष्य बना लिया गया हो तो विचार संघर्ष को मिटा कर विचार समन्वय की शैली का विकास करना ही होगा। नया अर्थशास्त्र भी होना चाहिए विषमताओं को समाप्त करने वाला :
विश्व में दो प्रकार के संघर्ष मुख्य होते हैं-एक विचारों का संघर्ष तथा दूसरा स्वार्थों का संघर्ष । विचारों का संघर्ष दूर करने की दृष्टि नई समन्वय शैली अपनाने और पनपाने का उल्लेख किया जा चुका है। अब स्वार्थों के संघर्ष को दूर करने के अर्थशास्त्र की नव रचना के विषय में विचार किया जा रहा है। सांसारिक जीवन निर्वाह के लिए अर्थ का महत्त्व सदा ही रहता है, कोई भी काम बिना
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