Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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संकल्पित, समर्पित व सर्वस्व सौंपने की तत्परता ही युवा की पहचान
युवा पीढ़ी के सामने असीम चुनौतियाँ
धनुर्विद्या प्रतियोगिता की कठिन चुनौती प्रतियोगियों के
समक्ष रखी गई -नीचे कड़ाह में पारदर्शी तेल भरा हुआ था और ऊपर एक चक्र घूम रहा था जिस पर टंगी हुई थी एक कृत्रिम मछली और नीचे कड़ाह में देखते हुए घूमते चक्र की उस मछली की दाहिनी आंख को शरसंधान करके भेदना । धनुष-बाण का निशाना बारीकी से सधा हुआ हो, वे कुशल हाथ ही ऐसा चमत्कार दिखा सकते थे। अपनी धनुर्विद्या का कौशल दिखाने के उद्देश्य से प्रतियोगियों को बुलाना आरंभ किया गया। पहला प्रतियोगी आया तो धनुष हाथ में लेने से पहले उससे पूछा गया- 'तुम्हें कितना क्या दिखाई दे रहा है?' वह कुछ समझा, कुछ नहीं समझा और बोला- 'मुझे सब कुछ दिखाई दे रहा है-दर्शक, प्रतियोगी, निर्णायक, तेल का कड़ाह, चक्र, मछली आदि सब । मेरी दृष्टि साफ है, उसमें कोई दोष नहीं है।' उत्तर सुनकर निर्णायक ने उसे वापिस लौट जाने का निर्देश दिया। दूसरा, तीसरा और इस प्रकार कई प्रतियोगी आए और उन सबसे यही प्रश्न पूछा गया, किन्तु किसी का भी उत्तर निर्णायक को संतुष्ट नहीं कर सका।
तब बारी आई अर्जुन की । धनुर्विद्या में अर्जुन से
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