Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुदृढ़ संकल्प बिना चमत्कार असंभव
आश्वस्त बनाएगा और गति त्वरित प्रगति में बदल जाएगी। साध्य के प्रति सतत जागरूकता ही तो ईश्वरत्व की आभा प्रदान करती है। चरित्रहीनता के चक्रव्यूह को तोड़ो, संकल्प से, संस्कार से, सदाशय से: ___ चरित्रहीनता अर्थात् विकृतियों, विषमताओं तथा तरह-तरह की बुराइयों का जमावड़ा बड़ा विकट होता है तो दुष्चरित्रों की चालें अमानवीय तथा घातक। उनकी कारगुजारियों में क्रूरता की मार मिलावट होती है। यह सब देखते हुए चरित्रहीनों की काम करने की विधि को चक्रव्यूह जैसी जटिल मानी जा सकती है। इस कारण चरित्रहीनता को परास्त करना चक्रव्यूह को भेदने जैसा ही होता है। किन्तु यह चक्रव्यूह भेदन अभिमन्यु के समान आधा अधूरा नहीं होना चाहिए अर्थात् चरित्र-विकास अभियान में प्रवृत्त कार्यकर्ताओं को पूरा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि चरित्रहीनों की हीन गतिविधियों का कैसे सामना किया जाय तथा किस प्रकार उनके आचरण में बदलाव लाकर उन्हें चरित्रहीन से चरित्रशील बनाया जाय? अच्छाई और बुराई की लड़ाई बहुत पुरानी है और इसी लड़ाई की प्रतीक रूप में कही जाती है-देवासुर संग्राम कथा। देव अच्छाई के प्रतीक और असुर बुराई के। दोनों के बीच लड़ाई का क्रम बना रहता है। यही लड़ाई है चरित्रहीन और चरित्रशील के बीच की, किन्तु इसकी कल्पना कुछ अनूठी है। यह लड़ाई भीतर की मानी जाती है जिसकी रणभूमि अपनी ही आन्तरिकता होती है। मनुष्य इस लड़ाई का पुरोधा है। वह बुराई को करने वाला भी है और अच्छाई का समर्थक भी। मनुष्य के अन्तःकरण में उसका यही द्वन्द चलता है। मन मूर्छा में भटक रहा हो तो वह विकृति, विषमता और बुराई में डूबा रहता है बेभान जैसा और जब तक कोई दयालु पुरुष उसे झिंझोड़ता नहीं तब तक वह जागृत भी नहीं होता है। किन्तु मनुष्य हमेशा बेभान नहीं रहता, अवसर आते ही जागृत होता है, अपनी ही बुराइयों से खुद लड़ता है और अच्छाइयों से अपनी झोली भर लेता है। यही मनुष्य-मनुष्य की जीवन गाथा होती है और जागरण अभियान सदैव फलदायक सिद्ध होते हैं। इस विश्लेषण का अभिप्राय यह है कि मनुष्य जागता है, सोता है, फिर जागता है-यह क्रम बना रहता है, किन्तु वह जागता रहे अधिक समय तक और कभी सो भी जावे तो जागरण का शंख ऐसा गूंजता रहे कि वह ज्यादा सोता न रह जाए। जागना, जगाना और जगाए रखना-यह मूलमंत्र है चरित्र निर्माण एवं उसके निरन्तर विकास का।
- आज की तात्कालिक समस्या यह है कि मनुष्य अधिकांशतः सुप्त है, शिथिल है और निष्क्रिय है और सोते रहने वाले के घर में किस्म-किस्म के चोर घुस जावें और बुरी तरह लूटपाट मचावें-यह तो होता ही है। यही कारण है कि मानव चरित्र आज विभिन्न विकृतियों से कलंकित है, उसका जीवन जागरणहीन है और तदनुसार वह चरित्रहीन भी है। चरित्रहीनता है ही नहीं, बल्कि गहरा गई है
और उसको देखते हुए उसे मिटाने के प्रयास भी उतने ही सटीक होने चाहिए। रोग जितना असाध्य, चिकित्सा उतनी ही असाधारण हो तभी काम बनेगा। देवासुर संग्राम में देवताओं का बल बढ़ना ही चाहिए तभी तो असुरों को बुरी तरह से परास्त किया जा सकेगा। इस कारण आज चरित्रशीलता को उभारना किसी भी गंभीर चुनौती से कम नहीं है। ऐसी चुनौती को झेलना, उसे जीतने के लिए संकल्पबद्ध होना तथा साध्य को प्राप्त कर लेना-यह सब अतिशय दायित्वपूर्ण है।
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