Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुदृढ़ संकल्प बिना चमत्कार असंभव
ऊपर चरित्र विकास के साथ चारित्रिक क्षमता का निर्माण किया जाए कि घृणा, हिंसा, प्रलोभन, सत्ता लिप्सा आदि दुर्गुणों का उन्मूलन उनके प्रारंभ होने के साथ ही कर दिया जाए।
वर्तमान समय में हिंसा आदि के फैलाव से नागरिकों के तन और मन दोनों आहत हैं, बल्कि आज की सभ्यता ही घायल हो चुकी है, अतः तन और मन के घावों पर मरहम लगा कर उन्हें स्वस्थ बनाने की पहली जरूरत है और इसके लिए चरित्र निर्माण के सिवाय अन्य कोई सशक्त उपाय नहींजागृति बढ़ावें, विवेक को परिपक्व करें तथा ध्यान आदि से माध्यमों से मनोबल को विकसित बनावें
और चरित्र विकास का यह अभियान, आन्दोलन या क्रम तब तक सतत रूप से चलता रहे जब तक कि आज के भयग्रस्त मानव को मानवता के मूल्यों पर खड़ा सच्चा, निर्भय और सक्रिय मानव रूप में न ढाल दिया जाए। अब ऐसा संसार बने जिसका पहला मूल्य हो-बलशाली का वर्चस्व (सरवाइवल ऑफ दि फिटेस्ट) नहीं, बल्कि बुद्धिशाली और भावनाशील का वर्चस्व (सरवाइवल ऑफ दि वाइजेस्ट) रहेगा। आपदा कितनी भी बड़ी या कड़ी क्यों न हो, साध्य को सदैव याद रखो : ___ संकल्पबद्धता की स्थिरता के लिए दो बातें जरूरी हैं-एक तो साध्य सदैव स्मृति में बना रहना चाहिए तो दूसरे, वह सत्साहस बना रहे जो किसी भी आपदा से टकराने में हिचकिचाहट नहीं, चाहे वह आपदा भीषण हो या कठोर साध्य याद रहे और साधन की शुद्धता से डिगें नहीं तो वैसा संकल्प कभी टलेगा नहीं। जब हम समस्याओं और संकटों से घिरे हों, तब भी यदि धीरज बना रहे तो छोटे स्तर पर प्रारम्भ किया गया प्रतिरोध भी संकल्प की दृढ़ता के साथ सशक्त बन जाता है। आपदा जितनी बडी और कडी हो, उतनी ही अधिक ऊर्जा सब ओर फैलाने के लिए कठोर प्रयास करना चाहिए ताकि संसार के सबसे बड़े घटक में तथा बीच के अन्य घटकों से लेकर सबसे छोटे घटक व्यक्ति तक स्वस्थता का नया वायुमंडल संचरित किया जा सके। इससे वर्तमान पीढ़ी के लिए ही नहीं, आने वाली अनेक पीढियों के लिए भी प्रगति का पथ प्रशस्त होगा और ऐसी ऊर्जा चरित्र सम्पन्नता से ही उत्पन्न एवं प्रसारित की जा सकती है।
चरित्रशीलता का विस्तार विश्व तक माना गया है और हमारा साध्य भी इतना ही विस्तृत होना चाहिए। यह नित प्रति का चिन्तन हो कि सारा संसार हमारा घर है और सभी मानव हमारे परिजन तथा यह धारणा बने कि संसार का प्रत्येक मानव और प्राणी हमारे लिए महत्त्व का है-उसके सुख-दुःख हमारे सुख-दुःख हैं। यदि इस रूप में विश्व स्तर का चरित्र विकसित किया जाए तो हममें से प्रत्येक के श्रेष्ठ विचारों, उत्तम ऊर्जा, अविरल अनुभूतियों एवं सब के व्यावहारिक कार्यों से विश्व की वर्तमान अवस्था में शुभ परिवर्तन लाया जा सकता है। हमारे चारों ओर जो घट-गुजर रहा है, उसे शुद्धता और शुभता की दिशा में मोड़ने के लिए हमें निरन्तर धैर्य एवं सामर्थ्य की आवश्यकता रहेगी। इसके लिए हमें अपने चरित्र पर, अपनी आतंरिक बुद्धि एवं शक्ति पर पूरा विश्वास करना होगा अर्थात् हमारा अपना आत्मविश्वास सबल और पुष्ट बन जाना चाहिए जो उस प्रकार के चरित्र के निर्माण तथा विकास के अभाव में संभव नहीं। हमारे आत्मबल के असर से प्रभावित होंगे तथा वे भी आत्मबल के धनी बनने का यत्न करेंगे। गीता में कहा गया है-वह कार्य, जो नियमित है तथा जो
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