Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुदृढ़ संकल्प बिना चमत्कार असंभव
चरित्रहीनता का चक्रव्यूह टूटना चाहिए
मुनिधर्म ग्रहण करने से पूर्व स्थूलिभद्र ने संकल्प किया
कि वे अपने अब तक के रागात्मक संबंध को रागमुक्त कर लेंगे, क्योंकि वे तब विराग के क्षेत्र में प्रविष्ठ हो रहे थे, जहां से वीतराग के साध्य को उन्हें प्राप्त करना था । उन्होंने तभी विचार करके निश्चय किया था कि अपने संकल्प पर अटल ही नहीं रहेंगे, अपितु उसे अग्निपरीक्षा से गुजार कर प्रमाणित भी करेंगे। इस निश्चय के के अनुसार दीक्षित हो जाने पर मुनि स्थूलिभद्र अपने गुरु समक्ष उपस्थित हुए । उनकी विधिपूर्वक वन्दना करके नवदीक्षित मुनि ने निवेदन किया- 'गुरुदेव ! मैं अपने इस मुनि - जीवन को वैराग्य से ओतप्रोत बनाना चाहता हूँ कि एक दिन आपकी कृपा से वीतरागता के पथ पर अग्रसर हो सकूँ ।' गुरु को यह सुन कर अतीव हर्ष हुआ, उन्होंने पूछा- 'तुम्हारा अति उत्साह सराहनीय है किन्तु तुम चाहते क्या हो ?' स्थूलिभद्र ने विनती की अपनी रागात्मकता के परिहार के लिए मैं इस चातुर्मास को कोशा नर्तकी के आवास पर सम्पन्न करने की आपसे आज्ञा चाहता हूँ। गुरु ने अतीव हर्ष से ही चातुर्मास की स्वीकृति दे दी ।
अपने मुख्य द्वार पर आहट होने पर कोशा ने अपनी