Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
आकृतियां भी सम्मिलित है। चित्रों में सादृश्य वर्णन के बाद भावांकन शुरू हुआ। चित्र तीन फलकों पर मिलते हैं-1. भित्ति या चट्टान, 2. चर्म या वस्त्र तथा 3. काष्ठ, तालपत्र, पत्थर, हाथीदांत और कागज। अजन्ता की गुफाओं में वेदान्त, जैन व बौद्ध शैलियां अंकित हैं। यह चित्रकला पहले काफी फैली, लेकिन मुगलों के शासन के बाद मूर्तिपूजा की उपेक्षा से चित्रकला को हानि पहुंची। अकबर के शासन काल में इसे उत्कर्ष मिला और साथ ही चित्रकला में मुगल शैली का विकास हुआ।
मुगलों के शासन काल में और उसके बाद बाहरी संस्कृतियों का देश की चित्रकला, शिल्प तथा भाषा पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा और मिश्रित शैली का विकास होने लगा। प्रो. हुमायूं कबीर का मानना है कि धर्म निरपेक्ष काव्य की रचना इस्लामी असर के कारण शरू हई। यह असर दोनों ओर हआ हिन्दी साहित्य भावुकता से चिन्तन की ओर बढ़ रहा था जबकि इस्लाम भावुकता के बिन्दु पर ठहरा हुआ था। यही कारण है कि इस्लाम का झुकाव एक ओर रामायण-महाभारत की तरफ हुआ तो दूसरी ओर रहीम, रसखान आदि मुस्लिम कवियों ने हिन्दी की काव्यधारा पर प्रभाव डाला। कबीर की प्रेम पीड़ा वैसी ही है जैसी मीरा की। इस्लाम का भाषा पर भी असर हुआ और फारसी के असर वाली उर्द भाषा का जन्म हआ। सरल होने से उर्द बोलचाल की भाषा बनने लगी। उर्द-हिन्दी के मिश्रण से.महात्मा गांधी ने समाधान के रूप में हिन्दस्तानी का आविष्कार किया। सामासिक संस्कृति भी इस्लामी प्रभाव से अछूती नहीं रह सकी। हिन्दुओं ने मुसलमानों को जातिवाद का जहर दिया तो मुसलमानों ने हिन्दुओं को पर्दे का श्राप। अहिंसा से मुसलमान प्रभावित हुए जिससे सूफीवाद चला
और उनका मांसभक्षण आदि कम हुआ। दोनों संस्कृतियों के तालमेल से संगीत और शिल्प के नये रूपों का उद्भव हुआ। यूरोपियों के आगमन और अंग्रेजों के शासन के स्थिरीकरण के बाद में संस्कृति, सभ्यता, साहित्य कला आदि पर नया आधुनिक प्रभाव अंकित होने लगा और सब में नयेनये बदलावों की शुरूआत हुई। आज इन सबका जो रंग सबके सामने है, उसे सबके सम्मिश्रण का सुहावना रंग कहा जा सकता है।
इस सम्मिश्रण का भारतीय चरित्र पर गाढ़ा प्रभाव भी स्वाभाविक ही था। चरित्र निर्माण की धारणाओं में भी परिवर्तन के लक्षण प्रकट हए क्योंकि सोच के विषय व दायरे बदल गए। सांस्कतिक सम्मिश्रण से शिष्टाचार के मानदंड बदले तो चारित्रिक गणों के स्वरूप में भी बदलाव आया। यही नहीं, जब इस्लाम और ईसाइयत का उदार हिन्दुत्व के साथ सम्पर्क बढा तो उनका आवेश भी संतुलित हुआ। यों धर्म निरपेक्षता का वातावरण घना होने लगा। चरित्र निर्माण पर इन सारे परिवर्तनों का असर पड़ा जो दोनों प्रकार का था-पहले के कुछ मिथक टूटे तो कुछ नये क्रान्तिकारी तत्त्वों ने भी प्रवेश किया। चरित्र निर्माण की व्यापकता के लिये संस्कृति आदि का अध्ययन आवश्यक :
यह प्रश्न किया जा सकता है कि जहां चरित्र निर्माण का कार्य है, वहां विश्वभर के सांस्कृतिक प्रभावों को जानने-समझने की क्या आवश्यकता है? इस प्रश्न के तल में यह अज्ञान छिपा हुआ लगता है जो चरित्र निर्माण की व्यापकता एवं गहनता को भलीभांति नहीं समझता है। चरित्र निर्माण और विकास का प्रश्न न केवल एक व्यक्ति, एक वर्ग, एक समाज या एक राष्ट्र के साथ ही जुड़ा
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