Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
यों तो हमने अन्तरिक्ष को जीत लिया पर जीत न पाए अपना ही अन्तर्हदय विशेष अणु को विरवंडित करते चले गए हम पर वंडित नहीं कर पाए अपना द्वेष-विद्वेष आमदनियां रखब बढाई हमने पर नैतिकता तो टूट गई मात्रा का विस्तार किया अपार पर गुणवत्ता तो स्तूट गई। यह ऐसा अजीब समय है कि इन्सान हो गया लम्बा
और चरित्र बहुत छोटा मुनाफों का लगा अम्बार चौतरफा लेकिन संबंधों का रूप बहुत वोटा। विश्व शांति की बातें की जाती है किन्तु देश-देश में मचा संघर्ष बहुत प्रमाद, रईसी पर नहीं विनोद, नहीं विमर्श भोजन के निकले अनेक स्वादिष्ट प्रकार लेकिन पोषणता पर ही प्रहार विवाहों की धूमधाम का जमाना पर तलाकों का आंकड़ा बढ़ गया मकान बन रहे आलीशान लेकिन टूटे घरों का मलबा उन पर चढ़ गया। यह ऐसा युग है। जब प्रदर्शनों में तो सम्पन्नता दिवाई जाती है। आडम्बर और दिरवावों की बातें सिरवाई जाती है पर रवाली है गोदाम, रहे अनजान हकीकत बन गई है कहावत'ऊँची दुकान, फीका पकवान।'
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