Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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दुर्व्यसनों की बाढ़ बहा देती है चरित्र निर्माण की फलदायी फसल को
है-इसका तो आकलन ही कठिन है। .. व्यसनी व्यक्ति के भावना पक्ष को जगाकर ही उसे व्यसन मुक्त किया जा सकता है। मदिरापान के विकराल रूप को देखते हुए महात्मा गांधी के इस कथन का व्यसन मुक्ति के कार्यक्रम में उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था-'मैं भारत का दरिद्र हो जाना पसन्द करूंगा, लेकिन यह कभी बर्दाश्त नहीं करूंगा कि हमारे हजारों लोग (जबकि आज तो करोड़ों हो गए हैं)शराबी हो जाएं। अगर भारत में शराबबंदी जारी करने के लिए, शिक्षा को भी बंद करनी पड़े तब भी कोई परवाह नहीं। मैं भारी से भारी कीमत चुका कर भी शराबखोरी बंद कराना चाहूंगा।' इस कथन से पहले तो अपने आपको महात्मा गांधी की अनुयायी मानने वाली पर्टियों और सरकारों को सबक लेना चाहिए कि तुरन्त शराबबंदी कर दी जाए। जनता को भी शराबबंदी के लिए आंदोलन करना चाहिए। चरित्र निर्माण अभियान में मदिरा व्यसन मुक्ति पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। - वैसे व्यक्तिगत स्तर पर ध्यान, जाप, समीक्षण आदि का अभ्यास आरंभ कराया जाए और बाद में इन आयोजनों को सामूहिक स्वरूप प्रदान किया जाए तो निर्व्यसनी भावना बलवती बनेगी। मदिरा की घातकता पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उसके संपूर्ण परित्याग की प्रेरणा जगाई जाए। - वास्तविकता तो यह है कि उस मदिरा व्यसन के त्याग में वह प्रत्येक प्रयत्न सार्थक रहेगा, जो व्यसनी के त्याग के विचार को पक्का करे, उसके आत्मविश्वास को बढ़ावें एवं उसके हृदय में परिवर्तन की लहर जगावे। सद्भावना का प्रभाव आचरण परिवर्तन में अवश्य दिखाई देगा। प्रवचनों, उपदेशों, विचारगोष्ठियों आदि का भी अच्छा असर पड़ेगा। शाकाहार से बने जीवन सात्विक, तब विचार भी होवें तात्विक : ___ व्यसन शब्द ही विकृत आहार का प्रतीक है, अतः आहार शुद्धि से ही व्यसनों का मूलोच्छेद किया जा सकता है। आहार तामसिक न रहे और सात्विक बन जावे तो सभी व्यसनों की समस्या पूरी तरह से समाप्त की जा सकती है। आहार की सात्विकता शाकाहार से बढ़कर किसी में भी नहीं है। शरीर शास्त्रियों और वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि मानव शरीर की जैसी संरचना है उसके लिए एकमात्र शाकाहार ही उपयुक्त है, मांसाहार तो कतई नहीं। मनुष्य की दैहिक रचना शाकाहारी वर्ग की है। प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी रूप में ही रचा है। शाकाहार ही सभी दृष्टियों से मानवीय आहार है । यह शाकाहार सात्विक है, प्राकृतिक है, परिपूर्ण है, मानवानुकूल है, आरोग्यपूर्ण है, नैतिक है तथा अध्यात्म सहायक है। जब जीवन सात्विक बनता है तभी मनुष्य के विचार तात्विक बन सकते हैं तथा आत्मोन्नयन के द्वार खुल सकते हैं। सात्विकता से ही धार्मिकता का विकास होता है। यह नि:संकोच रीति से स्वीकार किया जा सकता है कि मनुष्य शाकाहार के लिए हैं तथा शाकाहार मनुष्य के लिए है। ___आहार के सारे प्रयोजन शाकाहार से सिद्ध होते हैं। शाकाहार शुद्ध और उपयुक्त है जबकि मांसाहार अशुद्ध और अनुपयुक्त ही नहीं, तन-मन के लिए भीषण हानिकारक भी है और हिंसा जनित भी। आहार ही पहली भूमिका तन के लिए है कि 1. वह गर्भस्थ शिशु को पोषण देकर उसे
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