Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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धनबल, बाहुबल व सत्ता की ताकत का सदुपयोग चरित्रवान ही करेगा
धर्मरहित विज्ञान से चरित्र का नाश
विज्ञान ने अपार भौतिक विकास किया किन्तु वह
विवेकहीन सिद्ध हुआ है, क्योंकि साथ-साथ मानव को विज्ञान का चेहरा नहीं बनाया गया और मानवता के मूल्यों से वंचित मानव भी विज्ञान को मानवीय रंग नहीं दे पाया। यों विज्ञान और मानवता का समागम यथार्थ नहीं हो सका। उसका दुष्परिणाम सामने है कि आज चारों ओर धन और सत्ता को हथियाने के लिए बीभत्स पागलपन फैला हुआ है, सुख-सुविधाओं की उद्दाम लालसाओं ने धर्म और नैतिकता की सारी हदें पार कर ली हैं और सत्ता नायक विज्ञान की सहायता से संहारक और अधिनायक होते जा रहे हैं - उनमें सेवा भाव तो नहीं ही है, पर उनके शासन में रचनात्मकता भी नहीं रही है। एक अंग्रेज कवि ने अपनी काव्य रचना 'पेराडोक्स' में आज के विरोधाभासों पर अपनी तीखी नजर फेंकी है जिसका अनुवाद यहां दिया जा रहा है
इतिहास में आधुनिक समय का विरोधाभास बड़ा विचित्र है
उन्हीं विडम्बनाओं का यह चित्र है। हमारे गगनचुम्बी भवन हैं ऊंचे से ऊंचे