Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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दुर्व्यसनों की बाढ़ बहा देती है चरित्र निर्माण की फलदायी फसल को
रूढ़ता का उन्मूलन हो, निवारक एवं रचनात्मक उपायों से
रूढ़ता उन्मूलन करने के लिए उसके कारणों पर प्रहार करना होगा। जैसा कि बताया जा चुका है कि मुख्य कारण है विवेक बुद्धि का कुंठित हो जाना। विवेक बुद्धि तभी कुंठित होती है अथवा की जा सकती है जब किसी को सम्यग् ज्ञान से विमुख कर दिया जाए और उसके धर्माचरण को अंधी गली में धकेल दिया जाए। इसका यह स्पष्ट अर्थ हुआ कि निवारक एवं रचनात्मक उपायों में सबसे पहले विचार क्रांति पर बल दिया जाए। पहले प्रबुद्ध वर्ग स्वयं इस क्रान्ति के महत्त्व का आकलन करे और तब सामान्य जन तक यह विचार फैलावे कि वे स्वयं आज की दुर्दशा को समझें, स्वार्थी और कट्टरवादियों के जाल को उखाड़ फेंके तथा जीवन, धर्म, आचरण और चरित्र की मौलिकता को आत्मसात् करें। विचार क्रान्ति की प्रक्रिया कुछ लंबी हो सकती है किन्तु स्थिर परिवर्तन इसके बिना संभव नहीं। फिर आज धर्म और सम्प्रदायों की जैसी तीखी जकड़ में सामान्य जन फंसा हुआ है, उसे वहां से मुक्त करने का आत्म-जागरण के अलावा अन्य क्या उपाय हो सकता है? सम्प्रदायों की विकृतियां तो है ही, किन्तु नामधारी धर्मों के प्रचलन में भी कितनी भ्रान्तियां समा गई है कि ये धर्म भी मानवता के सच्चे विकास में बाधक से बन रहे हैं। महान् दार्शनिक डॉ. एस. राधाकृष्णन् के इस सम्बन्ध में विचार मननीय हैं। उन्होंने धर्म के वर्तमान स्वरूप की चर्चा करते हुए कहा है-"यदि संसार अपनी आत्मा की खोज में है तो ये सारे धर्म-जिस रूप में वे हम तक पहुंचे हैं, हमें उस आत्मा की प्राप्ति नहीं करा सकते। वे मानवता को मिलाकर एक करने की बजाए उन्हें विरोधी दलों में विभाजित करते हैं। वे जीवन के सामाजिक पक्ष पर बल न देकर वैयक्तिक पक्ष पर बल देते हैं। वैयक्तिक विकास के मूल्यों का अतिरंजन करके वे सामाजिक भावना और कल्पना को निरुत्साहित करते हैं। वे कर्म की अपेक्षा सिद्धान्त पर अधिक बल देते हैं। अपने परमात्मा के राज्य की धारणाओं के द्वारा वे लोगों को इस पृथ्वी पर अपेक्षाकृत.अच्छा जीवन बिताने के प्रयत्नों से विमुख कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उनकी आत्मिक शक्ति समाप्त हो चुकी है।" (ग्रन्थ-धर्म और समाज, अध्याय 2, धर्म की प्रेरणा और नई विश्व व्यवस्था)।
धर्म-सम्प्रदायों की वर्तमान में जैसी भी अवस्था है, उसमें विचार-क्रान्ति से ही ठोस परिवर्तन आ सकता है। किन्तु यह एक प्राथमिक उपाय होगा। विचार-क्रान्ति के माध्यम से मानव चरित्र का नव निर्माण करना होगा-एक नया मानव बनाना होगा, जो सच्चे धर्म का वाहक बने, शुद्धाचरण की नई जागृति लावे और व्यक्ति से विश्व तक की चारित्रिक शक्ति को सुदृढ़ आधार प्रदान करें। ऐसा ही चरित्र विकास जो रूढ़ता में भी टिका रहे और रूढ़ता को टिकने न दें____ अन्ततः चरित्र विकास ही रूढ़ता का सबसे अधिक असरदार उन्मूलक हो सकता है, बल्कि ऐसा सुदृढ़ चरित्र विकास साधा जा सकता है जो रूढ़ता में भी टिका रहे तथा सफल संघर्ष करते हुए रूढ़ता को टिकने भी न दे। ऐसा चरित्र विकास आधारित होना चाहिए मन, वचन, कर्म की एकरूपता पर। जिसका मन एक, वचन एक और कर्म एक, वह निश्चित रूप से सज्जन है जिसका ज्ञान और आचरण कभी भी रूढ़ताग्रस्त नहीं हो सकता है (मनस्यैकं, वचस्यैकं, कर्मस्यैकं
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