Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
वातावरण के प्रत्येक क्रिया-कलाप के साथ हृदय को जोड़ने पर स्वाभाविक रूप से समझ में आ जाएगा कि मानवोचितता क्या होती है। उसे बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वह स्वयमेव व्यक्ति की वृत्तियों-प्रवृत्तियों में समाहित होती जाएगी और उसका प्रत्यक्ष अनुभव हो जाएगा। एक हृदय से दूसरे, तीसरे और इस तरह कई हृदयों को स्पन्दित करती हुई मानवोचितता एक स्पष्ट मूल्य का रूप ले लेगी। अतः सिद्धान्त परक एवं गुणमूलक संस्कृति को ही मैं सभी प्राणियों के आत्म-गुण विकास के अबाध-मार्ग के रूप में देखता हूँ (आत्म समीक्षण, अध्याय 4, सूत्र 3 पृष्ठ 142)।"
स्पष्ट हो जाता है कि मानव व्यक्तित्व का गठन किस प्रकार की गुणशीलता के आधार पर किया जाना चाहिए और मानव मूल्यों का सृजन भी। चरित्र विकास मानव-संबंधों में अहिंसा की प्रतिष्ठा का कारक बने : ___ पग-पग पर ध्यान रहे कि चरित्र विकास का मूल अहिंसा हो, आधार और विस्तार अहिंसा हो तथा प्रभाव और प्राप्ति अहिंसा से हो। जिन्होंने अहिंसा को परम धर्म स्वीकार किया अथवा आज भी करते हैं, उनके लिए लोक जीवन की आवश्यकताएं अनायास ही सिद्ध हो जाती हैं। आज वर्ग, समाज, राष्ट्र या विश्व मुख रूप से शोषण की समस्या से त्रस्त है। शोषण के लिये शुद्ध शब्द हिंसा है। शोषण इतना सूक्ष्म और व्यापक तत्त्व है कि अमुक राजनीतिक क्रान्ति या दूसरे तरह के आन्दोलनों से उसका समाधान हो जाएगा-यह अब तक भुलावा ही सिद्ध हुआ है। बड़ी कठिन और जीवनव्यापी साधना है हिंसा से लड़ना और अहिंसा की मानव संबंधों में प्रतिष्ठा करना। जब ऐसा संघर्ष शुरू करेंगे तब पता चलेगा कि शोषण को खत्म करना निरी आर्थिक या राजनीतिक समस्या ही नहीं है, बल्कि इस संघर्ष में ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह को आत्मसात् करना होगा तथा चरित्र को उस स्तर तक विकसित करना होगा, जहां वह स्व को गला कर सर्व में समाहित हो जाए।
चरित्र विकास को इस लक्ष्य का साधक बनाना होगा कि वह वर्तमान विश्व के वातावरण में . हिंसा को घटा-मिटाकर अहिंसा की सर्वत्र प्रतिष्ठा करे तथा शोषण को सदा के लिये उखाड़ फेंके। चरित्र विकास का ही दायित्व होगा कि नये मानव व्यक्तित्व का गठन हो।
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