Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
जाता। वह ड्रग्ज का आदी हो गया। नशा लेना उसकी आदत बन गई, ऐसी आदत जो रोके भी रुकती नहीं थी। निर्व्यसनी पक्का व्यसनी हो गया। यह एक त्रासदी से कम नहीं कि जिसने किसी भी दुर्व्यसन का पल्ला पकड़ा तो तयशुदा है कि उसका जीवन कष्टों में जकड़ा। -- हकीकत में कोई भी आदत किसी व्यसन का रूप तभी लेती है, जब व्यक्ति उस में आकंठ डूब जाता है-लिप्त हो जाता है। लिप्तता ऐसी गहरी कि उस व्यसन की खुराक पाए बिना तीव्र बेचैनी खत्म नहीं होती। ऐसी दशा दुर्दशा बन जाती है। वह ऐसी भयंकर हो जाती है कि व्यसनी को परिवार या समाज की लाज तो लगती ही नहीं, लेकिन अपने तन-मन का विनाश भी उसे समझ में नहीं आता। उसका उत्साह डूब जाता है, साहस समाप्त हो जाता है और आत्म-विश्वास अस्त हो जाता है। हताश होकर वह सुख के लिए सब ओर घूमता है, किन्तु सुख उसे कहीं मिलता नहीं। आखिरकार वह अपने व्यसन में ही डूब कर सब कुछ भुला देना चाहता है। धीरे-धीरे उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है और तब उसके अध:पतन को कोई रोक नहीं पाता, वह स्वयं तो बेजान पत्थर की तरह घाटी की ढलान पर नीचे से नीचे लुढ़कता ही चला जाता है। उसके जीवनान्त का कुछ ऐसा ही दारुण दृश्य बनता है।
जंब तक उसके मन-मानस पर कोई तेज झटका न लगे, उसके पुनर्चेतन की आशा क्षीण ही होती है। ऐसी किसी मार्मिक आघात के बाद ही उसका हृदय यदि आंदोलित होता है तो वह सोच पाता है कि कोई भी व्यसन हेय एवं त्याज्य इसी कारण कहा जाता है कि उससे शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय हानि ही होती है-सिर्फ हानियाँ और हानियाँ, किसी भी तरह के लाभ का तो लेशमात्र भी नहीं। जुए से धन का नाश और मानसिक चिंता-मांसाहार और मद्यपान से सभी सदगणों का नाश एवं कोई व्यसन ऐसा नहीं जिससे घोर अनैतिकता न उपजती हो। सखी और शांत जीवन तो जैसे आकाश कसम हो जाता है। तब से सात्विकता का मोल मालम होता है, शांति की कामना जागती है और प्रतिष्ठा का ख्याल आता है। उसी बिन्दु से वह जागता है, व्यसनों की जकड़ को तोड़ता है और तेज व ताकतवर कदमों से ऊपर चढ़ने का क्रम बनाता है। वि+असन = विकृत आहार कराता व्याधियों में विहार : __ व्यसन (वि+असन) का दूसरा नाम ही विकृत आहार है। कहा है कि आहार बिगड़ता है तो विहार बिगड़ता है तथा आहार-विहार बिगड़ा तो समझें कि इस जीवन का सब कुछ 'अच्छा' बिगड़ जाता है। विकृत आहार में मांसाहार सबसे ऊपर आता है। यह जो धारणा है कि मांसाहार अधिक ऊर्जाप्रद तथा पौष्टिक होता है, निरे भ्रम के अलावा कुछ भी नहीं। 'मांसाहारः सौ तथ्य' के नाम से डॉ. नेमीचंद द्वारा लिखित एक पुस्तिका प्रकाशित हुई है, जिस में सौ तथ्य के रूप में मांसाहार की
स्तार से विवेचन किया गया है। उसमें उल्लिखित कुछ प्रमुख तथ्यों को यहाँ इस उद्देश्य से दे रहे हैं कि मांसाहार की असलियत सामने आवे और शाकाहार के प्रति प्रतिबद्धता का अधिकतम विस्तार हो सके।
कुछ तथ्य इस प्रकार हैं :
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