Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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आचार के उच्चतर बिन्दु, अहिंसक क्रांति और व्यक्तित्व गठन
ममत्व बुद्धि का त्याग नहीं करता-चाहे उस सामग्री का उपभोग भी न करता हो, फिर भी उसे त्यागी नहीं कहा जा सकता है। इससे गुणवत्ता की स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि त्याग मन की सहर्ष स्वीकृति के साथ ही होना चाहिए। जो स्वेच्छा से त्याग करता है, वही त्यागी कहलाता है। मुख्य बात है ममत्व बुद्धि का त्याग, जिसके बिना गुण विकास की पूर्णता की दिशा में गति नहीं होती और जो यह त्याग हो जाए तो सकल गुण विकास का क्रम सहज बन जाता है। अगर नींव पुख्ता बनी है तो इमारत भी पुख्ता ही होगी। लेकिन कच्ची नींव पर जो इमारत बना भी दी गई तब जब भी किसी कारण से नींव हिली तो समझिए कि इमारत ढही। समत्व बुद्धि मौलिक जीवन की नींव होती है और चारित्रिक गुण होते हैं नींव की ईंटें। किन्तु ममत्व बुद्धि वह गारा मिट्टी है जिस पर यदि नींव डाली गई तो वह इमारत को पक्की नहीं बनने देगी। ___ यह विचारणीय तथ्य है कि व्यक्ति के भीतर ममत्व बुद्धि का एक जाल-सा बुना हुआ रहता है। उसके रेशमी धागे इतने जटिल और उलझे हुए होते हैं कि उनको खोल पाना आसान नहीं होता। बाहर की रस्सी में पड़ी गांठें भी जब बड़ी मुश्किल से खुल पाती हैं तो ममत्व बुद्धि की ग्रंथियों को खोलना सरल कैसे हो सकता है? लेकिन उसका भी आशास्पद मार्ग है और वह है कि मानव अन्तर्मुखी बनेस्वयं का स्वयं दृष्टा हो। अन्तर्मुखी बनने की चाह जग जाए तो राह कठिन नहीं है। चाह नहीं तो कोई राह नहीं और चाह जगे तो राह कठिन नहीं-इसका अनुभव सब को अपनी सामान्य जीवन चर्या में भी होता रहता है। काम पड़ने पर की तो कहावत बनी है कि गधे को भी बाप बनाना पड़ता है। जब अपना मतलब पूरा करने की राह खोज ली जाती है तो अन्तर्मुखी बनने की चाह क्यों नहीं जगाई जा सकती है? एक चाह जगनी चाहिए, संकल्प बनना चाहिये, फिर कुछ भी असंभव नहीं रहता है। ___ आज जिधर देखें, वहां बहिर्मुखता ही नजर आ रही है। जितना आकर्षण आज बाहर की दुनिया को देखने का, उसको सुनने का, समझने का है उतना, उतना नहीं, उसके आधे प्रतिशत जितना भी आकर्षण अन्तर्मुखिता के प्रति जग जाए तो रास्ता सुगम हो सकता है क्योंकि उससे उत्पन्न होने वाला गुणों का विकास आगे से आगे मार्ग को प्रशस्त बनाता रहेगा। बहिर्मुखी वृत्ति ममत्व बुद्धि का विस्तार है, इसलिये गुणवत्ता का बिखराव है। ऐसे में दिग्विमूढ-सी दशा हो जाती है। जबकि अन्तर्मुखी व्यक्ति का व्यक्तित्व एक अलग किस्म का होता है। वह अपनी शक्तियों का सदुपयोग करता है और गुण विकास को पूर्णता प्रदान करके अलौकिक आनन्द का अनुभव करता है। जीवन का सार उसे प्राप्त हो जाता है और वह गुण विकास का सफल प्रेरक बन जाता है। अन्तर्मुखी व्यक्ति अद्भुत जीवनशैली वाला होता है-जब तक उसके स्वार्थों की पूर्ति होती रहती है तब तक वह उन्हें अपने सपनों का राजा मानता है और स्वार्थ पूर्ति का अभाव बन जाता है तब स्नेही से स्नेही जन भी अपरिचित हो जाता है। परन्तु अन्तर्मुखी अपना और सबका समान रूप से मित्र, हितैषी एवं सहायक बना रहता है। ___ अन्तर्मुखिता के गुण को गहराई से समझिए। आत्मा का जो अपना स्वभाव है, जीवन की जो मौलिकता है वह है अन्तर्मुखिता, क्योंकि यह गुण चरित्र विकास की नींव की, मानों कि पहली ईंट है। फिर गुण विकास का क्रम इतना स्वस्थ, इतना शीघ्रगामी और इतना सटीक होता है कि नींव की
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