Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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आचार के उच्चतर बिन्दु, अहिंसक क्रांति और व्यक्तित्व गठन
है कि विश्व की राजनीति में अहिंसक क्रान्ति का आगाज हो चुका है।
वर्तमान विश्व एवं समाज में राजनीति का काफी प्रभाव है- अन्य सामाजिक नीतियां उससे प्रभावित रहती है। सभी स्तरों पर इस कारण विवादों को मिल बैठ कर सुलझाने तथा उत्तेजक घटनाओं के बाद शान्ति स्थापना हेतु ठोस काम करने की आज बहुसंख्यकी मनोवृत्ति बन चुकी है। आपसी बातचीत से आपसी मेल मिलाप बढ़ता है और हिंसा का दरवाजा बन्द होता है। हिंसा नहीं तो वहां अहिंसा आएगी और अपने विधायी स्वरूप की क्रियान्विति देखेगी ही । आज पशुओं आदि के साथ क्रूरता के विरोध में, पर्यावरण रक्षा के पक्ष में तथा उत्पीड़ित मानव वर्गों के कष्टों को दूर करने में जितनी तत्परता से अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं आदि कार्यरत हैं उनमें अहिंसा की 'स्पिरिट' के ही दर्शन होते हैं और ये सब शुभ लक्षण हैं कि पूरे विश्व में मानव का नव-चरित्र गढ़ा जा रहा है जो एक के लिए सब और सबके लिए एक के सपने को साकार करने की आशा जगाता है। विश्वव्यापी घटनाओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अहिंसा का बढ़ता प्रभाव एक ओर वर्तमान लोकतंत्रों के स्वरूप एवं कार्य स्वस्थ बनाएगा तो दूसरी ओर सर्वत्र ऐसी जीवनशैली का विस्तार करेगा जो समता, सर्वहित, स्नेह, सहयोग एवं सह-अस्तित्व के आधार पर आगाज की फलश्रुति मान सकते हैं।
चरित्र विकास से हो नये मूल्यों एवं नये मानव-व्यक्तित्व का सृजन :
नया मानव-व्यक्तित्व सृजित होगा तभी तो सृजन हो सकेगा नये मानव मूल्यों का । इस कारण पहले समझें कि क्या होता है मानव-व्यक्तित्व तथा किस प्रकार व्यक्तित्व की रूपरेखा बनाई जाती है, उसके आवश्यक तत्त्वों की पूर्ति की जाती है और समग्र व्यक्तित्व का अंकन किया जाता है।
व्यक्तित्व के विषय में सामान्य धारणा यह रहती है कि व्यक्तित्व वह है जो कुछ ही महापुरुषों को प्राप्त होता है और जिसे पाने के लिये कई लोग संघर्ष करते रहते हैं । किन्तु मनोविज्ञान के अनुसार यह धारणा सही नहीं है। इसका मानना है कि व्यक्तित्व जैसी प्राप्ति प्रत्येक व्यक्ति को मिली हुई होती है। व्यक्तित्व का वैज्ञानिक तथ्य यह है कि व्यक्तित्व प्रत्येक व्यक्ति का पृथक्-पृथक् होता है। इस आधार पर कह सकते हैं कि एक व्यक्ति की कार्य विधि का संगठित स्वरूप ही उसका व्यक्तित्व होता है। इसके पहलुओं को देखें- (1) प्रकृति (टेम्प्रामेंट) - इसमें व्यक्ति के भावनात्मक (इमोशनल) लक्षण सम्मिलित होते हैं, (2) चरित्र ( केरेक्टर) - इसका संबंध नैतिक एवं चारित्रिक विशेषता से होता है कि एक व्यक्ति का सबके साथ व्यवहार कैसा है और उसका लोग क्या नैतिक आकलन करते हैं। इसमें गुण या अवगुण सामने आते हैं कि कौन कितनी सामाजिकता रखता है, कितना उदार और लचीला है यानी कि व्यवहार में कितना साहसहीन या कमजोर है। इन गुणावगुणों में कायरता, ईमानदारी, क्रूरता आदि सभी शामिल रहते हैं और इनकी समीक्षा तत्कालीन सामाजिक नैतिकता की संहिता के अनुसार होती है। ये जो चारित्रिक गुण हैं, वे ही व्यक्तित्व के गुण कहलाते हैं। इन्हीं गुणों से भिन्न-भिन्न व्यक्तित्वों की तदनुसार विभिन्नता दिखाई देती है । (3) रुचियां और रूख-ये व्यक्तित्व की ही अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं। मुख्यतः इन पहलुओं के आधार पर व्यक्तित्व की विशिष्टता का आकलन होता है, जो (अ) गुण - मापक (रेटिंग स्केल्स), (ब) परख
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