Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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मानवीय मूल्यों का प्रेरक धर्म ही उज्जवल चरित्र
सबसे बड़ी पहली बहू ने सोचा कि ससुर जी सठिया गये लगते हैं, वरना इस ऐश्वर्य सम्पन्न घर में चावल के मात्र पांच कणों का क्या मोल? और आश्चर्य तो यह कि ये पांच कण वे वापिस लेना चाहेंगे। वह ठठा कर जोर से हंसी और बेपरवाही के साथ उसने वे पांच कण खिड़की के बाहर फेंक दिये। घर में कोई चावलों की कमी तो है नहीं, जब मांगेंगे, पांच कण वापिस लौटा दूंगी। आखिर इन चावल के कणों पर कोई छाप-मोहर तो लगी हुई है नहीं कि ससुर जी पहचान पायेंगे। कण बाहर फैंक कर वह निश्चिन्त हो गई।
दूसरी बहू के मन में ससुर जी के प्रति आदर भाव था, फिर भी उसे हंसी आई कि क्या सोचकर उन्होंने चावल के सिर्फ पांच-पांच कण सभी बहुओं को दिये हैं। लगता है कि सास की मृत्यु के बाद उनका दिमागी सन्तुलन बिगड़ गया है और पांच-पांच कण देने तथा उन्हें मांगने पर लौटाने की बात इसी असंतुलन का नतीजा है। फिर भी चावल के ये पांच कण ससुर जी का प्रसाद है जिसका अनादर नहीं किया जाना चाहिए। उसने पांचों कण एक साथ अपने मुंह में डाले और उन्हें चबा गई ।
तीसरी बहू अपने कक्ष में कुछ अलग ही सोच में पड़ गई। चाहे वह अंधी ही हो, पर ससुर जी के लिये उसके मन में आस्था थी । उसने मन ही मन कहा कि चाहे जो सोच कर ससुर जी ने ये चावल के पांच कण दिये हों, मुझे उनको पूरी साल-सम्भाल के साथ रख देना चाहिए, क्योंकि ये कण उनके आशीर्वाद रूप हैं जिनकी अवहेलना कदापि उचित नहीं । उसने सोने की एक मखमली डिबिया निकाली और चावल के वे पांच कण उसमें ठीक से जमा दिए यह सोचकर कि जब इन कणों की मांग की जाएगी तो वह इन असली कणों को उन्हें वापिस सौंप देगी।
अब सबसे छोटी और चौथी बहू की कार्यवाही देखें। उसने अपने एक संदेश वाहक को बुलाया, एक विस्तृत पत्र लिखा और चावल के वे पांच कण सावधानी से जमाकर उसे अपने पीहर भेज दिया । उसने निर्देश दिया कि पांच कण सहित पत्र वह उनके पिताश्री के सुपुर्द कर दें। छोटी बहू योग्य भी थी और सक्षम भी। सबसे बढ़ कर उसे अपने पिता तुल्य ससुर जी की बुद्धि में अटूट विश्वास था । उसने मन ही मन समझ लिया कि इन पांच कणों के पीछे उनका कोई खास उद्देश्य है । यह समझकर ही उसने वे पांच कण उचित निर्देश के साथ अपने पीहर भिजवा दिए थे।
· पांच साल का समय देखते-देखते बीत गया। चारों बहुएं बुलावे पर ससुर जी के कक्ष में पहुंची। तब ससुर जी क्रमशः अपनी बहुओं को चावल के पांच कण, जो उन्होंने पहले दिए थे, वापिस लौटाने की बात करने लगे। पहली बहू ने चावल के पांच कण (दानें) लौटा दिये। पूछा गया कि क्या ये कण वही हैं। बहू झूठ न बोल सकी, सच-सच कह दिया कि उन कणों को तो उसने उसी दिन बाहर फैंक दिया था। तब दूसरी बहू ने पहले ही सच बता दिया और तीसरी बहू ने भी। जब चौथी बहू की बारी आई तो उसने उत्तर दिया- मेरे चावल के कण लाने के लिए उसके पीहर के नगर दस बैल गाड़ियां भेजनी होगी। अब ससुर जी के चकित हो जाने की बारी थी, बोले- क्या कह रही हो, बहू बैलगाड़ियों की जरूरत होगी? वह कहने लगी- पिताजी! मैं आपकी बहू हूँ तो आपकी प्रतिभा का कुछ अंश तो मुझे मिला ही है- बस उसी का उपयोग किया है मैंने। फिर भी समझ साफ नहीं हुई तब छोटी बहू ने स्पष्ट किया- मैंने वे चावल के पांच कण खेती से उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से अपने पीहर भेज दिये
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