Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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संसार व समाज के कुशल प्रबंधन का एक ही आधार चरित्र
जा सकता है। अतः प्रत्येक प्रबंधन का मूल स्वावलम्बन की भावना एवं स्थापना में होना चाहिए जिसका संविभाग एक अनिवार्य तत्त्व हो। प्रश्न व्याकरण सूत्र में कहा गया है कि जो असंविभागी हैप्राप्त सामग्री का समुचित रूप से वितरण नहीं करता तथा असंग्रह रुचि है अर्थात् अपने साथी मानवों के लिए समय पर उचित सामग्री का संग्रह कर खाने में रुचि नहीं रखता, मर्यादा से अधिक भोगने वाला लालची है, वह चोरी का दोषी है (असंविभागी असंगह रुई...अप्पमाण भोई से ताहिसए नाराहए वयमिणं, 2-3)। कुशल प्रबंधन सदा ही चेतना और चरित्र पर आधारित रहेगा। चरित्र निष्ठा के बिना किसी भी प्रबंधन की सफलता संदिग्ध रहेगी
कोई भी प्रबंधन, कोई भी आयोजन या कि कोई भी प्रोजेक्ट कैसे सफल हो सकता है जब जिसको लाभ पहुंचाना उस प्रबंधन, आयोजन या प्रोजेक्ट का उद्देश्य हो और उसके कार्यान्वय में उसी की उपेक्षा की जाए। भारत में अनेक विफलताओं का यही प्रधान कारण रहा है। ऐसा करने में यह स्पष्ट तथ्य सामने आता है कि जो लोग कार्यान्वय के जिम्मेदार होते हैं, उनमें चरित्र निष्ठा का नितान्त अभाव पाया जाता है। भारत जैसे पिछड़े देश में इस तथ्य से तो सभी परिचित हैं कि जिन वर्गों के लाभ के लिए कोई भी प्रबंधन आदि शुरू किया जाता है, वे तो अज्ञान, दैन्य आदि के कारण चरित्राभाव से ग्रस्त होते ही हैं। किन्तु यदि शासन के प्रतिनिधि भी अपनी भ्रष्टता के कारण चरित्र से पल्ला झाड़ लें तो वह स्थिति घातक अवस्था में पहुँच जाती है। चरित्र निष्ठा इस दृष्टि से यदि दोनों
ओर हो तो कोई भी समस्या जटिल रूप नहीं लेगी किन्तु प्रबंधन आदि के लिए उत्तरदायी व्यवस्थापक चरित्र निष्ठा का मार्ग त्याग दें तो पिछड़ों का उत्थान एकदम कठिन हो जाता है। यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि चरित्र निष्ठा के बिना किसी भी प्रबंधन आदि की सफलता संदिग्ध ही रहेगी।
यदि चरित्र निष्ठा का दोनों ओर अभाव है तो छोटे संगठनों या प्रोजेक्टों का प्रबंधन भी कामयाब नहीं बनाया जा सकता है, फिर संसार और समाज की विभिन्न प्रवृत्तियों का कुशल प्रबंधन कर पाना अमित साहस, सूझबूझ और धीरज भरा काम ही होगा। अतः ऐसे प्रबंधनों की सफलता के लिए तो ऐसे कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होगी जो एक ओर जागरणहीन लोगों में चरित्र की प्रेरणा भरेंगे तो दूसरी ओर प्रबंधन के सूत्रधारों को चरित्र निष्ठा की सीमा में कार्यरत बनाए रखने का कठिन प्रयास करेंगे। कुशल प्रबंधन हेतु चरित्र गठन की प्राथमिक अनिवार्यता एवं विकास की क्रमिकता ___ संसार व समाज के अन्यान्य संगठनों के कुशल प्रबंधन हेतु तो चरित्रशीलता अनिवार्य ही है, किन्तु व्यक्तिगत या सामूहिक जीवन विकास का कोई भी क्षेत्र चरित्रशीलता के बिना उन्नति की दिशा में गति नहीं कर सकता है। कुशल प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत होने से पूर्व ही उसके संचालकों का चरित्रगठन हो जाना चाहिए। यह प्राथमिक अनिवार्यता है। इतना ही नहीं, उन संचालकों का चरित्र कार्य संचालन के दौरान क्रमिक रूप से विकसित भी होता रहना चाहिए। चरित्र गठन से चरित्रशीलता विकसित होगी। चरित्रशीलता एक नई निष्ठा को जन्म देगी और वह निष्ठा उसकी चरित्र सम्पन्नता को पुष्ट एवं परिपक्व बनाती रहेगी।
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