Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
9. जल-सी निर्मल मणि-सी उज्ज्वल नवल स्नात, हिम धवल ऋजु तरल मेरी वाणी।
10. देवो मुझे
हाय, मैं हूँ वह सूर्य जिसे भरी दोपहरी में अंधियारे ने तोड़ दिया।
11. बांधों,
यह नदी घृणा की है काली चट्टानों के सोने से निकली है अंधी जहरीली गुफाओं से उबली है।
12.हर मनष्टा बौना है
लेकिन मैं बौनों में बौना ही बन कर रहता हूँ हारो मत, साहस मत छोड़ों इससे भी अथाह शून्य में बौने ने ही तीन पगों में धरती नापी।
13. सुनो,
मेरे मन हारो मत दूर कहीं लोग जीवित हैं यात्राएं करते हैं मंजिल है उनकी।
14. चलना तो हमको ही होगा
चलने में ही हम टूटों और अधूतों का
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