Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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चरित्र निर्माण का पारम्परिक प्रवाह एवं उसका सैद्धांतिक पक्ष
चरित्र निर्माण में प्रार्थना की परम्परा का प्रभाव : ___ चरित्र निर्माण में प्रार्थना का अनुपम महत्त्व माना गया है। प्रार्थना में प्रार्थी यदि भयाक्रान्त रहता है तो उसकी प्रार्थना यथार्थ रूप नहीं लेती है। प्रार्थना में सत्साहस की आवश्यकता होती है और यह सत्साहस कोई भी अपना चरित्र निर्माण करके ही प्राप्त कर सकता है। ऋग्वेद में प्रार्थना की गई है कि ओ अनन्त शक्ति के स्वामी!, तुम्हारी भक्ति में हम इतने शक्ति सम्पन्न हो जाते हैं कि हमारे मन में कोई भय नहीं रहता। हम इस विजेता की पूजा करते हैं, जो अविजेय है। प्रसिद्ध दार्शनिक बर्टेड रसेल का अभिमत है कि 'अंधविश्वास का मूल कारण भय होता है और यह क्रूरता पैदा करने वाला होता है। इस कारण भय पर विजय पाना चरित्र निर्माण तथा बुद्धि कौशल का प्रारंभ माना जाएगा।' तमिल कवि एवं दार्शनिक सुब्रह्मन्यम् भारती ने कहा है कि 'भय के दैत्य को जिसने परास्त कर दिया है और झूठ के नागराज को मार दिया है, वही वेदों के निर्देशित मार्ग को प्राप्त कर सकता है और ब्रह्म ज्ञान तक पहुंच सकता है।' पैगम्बर खलील जिब्रान का कथन है-'यदि तुम भय को समाप्त करना चाहते हो तो ध्यान कर लेना कि भय का स्थान उसके हाथों में नहीं है जो तुम्हें डराता है बल्कि उसका स्थान तो तुम्हारे अपने दिल में ही होता है।' पश्चिमी साहित्यकार मार्कट्वेन ने बताया है कि 'साहस भय का प्रतिरोधी है, उसका विजेता है, मात्र भय का अभाव नहीं है।' ये कथन इंगित करते हैं कि चरित्र निर्माण के द्वारा भय को समूल नष्ट कर दो और सत्साहस के साथ प्रार्थना में निमग्न होओ ताकि अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिये कुछ उल्लेखनीय कर सको।
अण शस्त्र. आतंकवाद और नाना प्रकार के भय से ग्रस्त आज के इस विश्व में प्रत्येक विवेकवान् की यही आशंका और उत्सुकता है कि यह चरित्रहीनता का पागलपन कब तक चलेगा
और हमें पतन के किस छोर तक लुढकाएगा? आज यह भयाक्रान्तता वास्तविक है। इतना भय व्याप्त है तो चरित्र निर्माण की महत्ती आवश्यकता है और प्रार्थना की परम्परा को व्यापक पैमाने पर पुनर्प्रतिष्ठित करके ही चरित्र का सच्चा विकास साधा जा सकता है। प्रार्थना एक ऐसा माध्यम होता है, जिसे जीवन में रमा कर अमिट प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है। यह प्रत्येक युग में सत्य सिद्ध हुआ है कि प्रार्थना से प्राप्त शक्ति विशाल पर्वतों को भी हिला सकती है, परन्तु प्रार्थना की ऐसी एकाग्रता की पूरी साधना के साथ खोज करनी होगी। यह खोज प्राचीन साधकों ने की थी और अपनी प्रार्थना शक्ति का परिचय भी दिया था। बाईबिल में कहा गया है कि 'मनुष्य को सदैव प्रार्थना करते रहना चाहिये।' एक दार्शनिक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने तो यहां तक कह दिया कि प्रार्थना इतनी तल्लीनता से करो जैसे कि तुम्हारी मृत्यु कल ही होने वाली है।' योगी अरविन्द के लिये तो प्रार्थना ऐसा उच्च कोटि का कर्तव्य है जिसकी शक्ति मनुष्य को अनन्त के साथ संयुक्त कर देती है। परमहंस रामकृष्ण का कथन है कि 'उस परम प्रभु की प्रार्थना तुम किसी भी विधि से करो जो तुम्हें पसन्द हो, क्योंकि यह सुनिश्चित है कि वह तुम्हारी सुनेगा, वह तो एक चिऊंटी के पांव की आवाज भी सुन सकता है।' 'मस्जिद ऊपर मुल्ला पुकार, क्या साहिब तेरा बहरा है, चिऊंटी के पग नैवर बाजे . वह भी साहिब सुनता है (संत कबीर)।'
चरित्र निर्माण एवं प्रार्थना की परम्परा की जीवन्तता के लिये इस आस्था में सबको एक हो जाना
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