Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
View full book text
________________
सुचरित्रम्
निर्माण की प्रवृत्ति होती है। चरित्र निर्माण की जो सार्वजनिक लौ भगवान् ऋषभदेव ने प्रज्वलित की, उसी लौ को आगे से आगे साधना का तेल मिलता रहा और यो लौ जलती रही कभी तेज तो कभी मंदी। जब-जब लौ मंदी हुई, उसे सम्भाला है किसी न किसी महापुरुष ने। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जब राक्षसी वृत्ति फैल रही थी उसे रोका और सबको जीवन की श्रेष्ठ मर्यादाओं का भान कराया जिन पर चरित्र निर्माण की प्रक्रिया आधारित थी। राम के बाद कर्मयोगी कृष्ण, अहिंसा के अवतार भगवान् महावीर, करुणाकरण भगवान् बुद्ध आदि अनेक महापुरुषों ने अपने आदर्श जीवन के माध्यम से चरित्र निर्माण की परम्परा के प्रवाह को हितावह एवं सुखद बनाकर जन जीवन को चरित्र से विभूषित किया। यह प्रवाह कभी भी अवरुद्ध नहीं हुआ। आधुनिक युग में भी महात्मा गांधी ने चरित्र निर्माण को व्यापक आधार पर प्राभाविक बना कर जनता को इस रूप में आन्दोलित किया कि चरित्र निर्माण की परम्परा के प्रवाह में एक नया तेजोमय स्वरूप सामने आया और सारा विश्व प्रभावित हुआ।
परम्परा के प्रवाह के सुपरिणाम भी सदा सामने आते रहे हैं जिन्हें चरित्र बल के चमत्कारों के रूप में देखा जा सकता है। अर्जुन माली तथा अंगुलीमाल के उदाहरण आश्चर्यजनक हैं । यक्ष के वशाधीन अर्जुन माली प्रतिदिन सात-सात हत्याएं कर रहा था और उस कारण पूरे नगर में आतंक छाया हुआ था किन्तु सुदर्शन श्रमणोपासक की प्रेरणा से जब वह भगवान् महावीर की शरण में गया तो उसके जीवन का कायाकल्प ही हो गया। हत्यारा अर्जुन सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवों का भी रक्षक और संयम साधक बन गया। भगवान् बुद्ध के व्यक्तित्व का भी डाकू अंगुलीमाल पर ऐसा ही शुभ प्रभाव पड़ा जो प्रतिदिन अपने द्वारा वध किये हए लोगों की अंगलियों की माला पहना करता था और तो और भगवान महावीर के पैरों में दंश देकर भी चंडकौशिक सर्प ने अपनी विषाक्तता इस प्रकार तजी कि वह सबकी क्रर प्रतिक्रिया को भी शान्ति के साथ सहने के लिये तत्पर बन गया। ये चरित्र प्रभाव की बानगियां हैं। महानता चरित्र प्रभाव की होती है जो एक सामान्य व्यक्ति भी विशेष अवसर पर विशिष्ट सफलता का परिचय देकर प्रकट कर सकता है। पश्चिमी देश का एक उदाहरण है केसाब्लांका का। वह एक किशोरवय का युवक था और अपने माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र। उसके पिता एक जलयान में कप्तान थे, उनका पुत्र भी पिता के साथ जहाज पर काम करता था। एक बार पिता ने उसे एक स्थान पर तैनात किया और आज्ञा दी कि जब तक उसे फिर से आदेश न दिया जाए वह उसी स्थान पर डटा रहे। इस बीच उस जहाज पर आग लग गई और उसके पिता आग बुझाने के कार्य में लग गये और अपने पुत्र की तैनाती को भूल गए। आग फैलती गई और उसने चारों ओर से केसाब्लांका को घेर लिया। वह अपने पिता की आज्ञा के लिये चिल्लाता रहा कि वह आग से बच जाए लेकिन आज्ञा के अभाव में वह वहां से हटा नहीं। फलस्वरूप वह उस आग में जल मरा। उसके इस चारित्रिक गुण की आज तक सराहना की जाती है। ___ आधुनिक युग की इस घटना को आश्चर्य ही माना गया कि ब्रिटेन के शाही दरबार में जहां निर्धारित पोशाक के बिना कोई आमंत्रित भी नहीं घुस सकता है, वहां महात्मा गांधी जैसे अल्प वस्त्री पुरुष को ससम्मान प्रवेश देना पड़ा। यह गोलमेज सम्मेलन की बात है जो लन्दन में आयोजित हुई थी। यह भी गांधीजी के चरित्र बल का ही चमत्कार था।
192