Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
कि द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर ने क्या किया? द्यूत में राज्य-सम्पत्ति हार जाने के बाद उन्होंने अपने भाइयों को, फिर स्वयं को दांव पर लगाया। खुद हार गये तो पत्नी द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया। क्या कोई अपनी पत्नी को भी बिना उसकी सहमति के जुए में दांव पर लगा सकता है? आज के लिये इस प्रश्न का उत्तर देना बच्चे के लिये भी सहज है कि किसी पति को ऐसा कोई अधिकार नहीं जो अपनी पत्नी को निजीव वस्तु की तरह जुए में दांव पर लगा दे। लेकिन उस समय में इस प्रश्न का समाधान महाभारत के महाज्ञानी भी नहीं निकाल सके. क्योंकि उस समय परम्परा वैसी ही थी और चारित्रिक स्तर भी उसी प्रकार का था। किन्तु इतिहास के ऐसे आघातों के परिणामस्वरूप मनुष्य का विवेक विकसित हुआ है तथा उसकी चरित्र शक्ति दृढ़तर हुई है। आज का विवेक तो बहुत आगे बढ़ा है। एक राष्ट्र किसी भी कारण से दूसरे राष्ट्र के साथ युद्ध करे-यह आज के विवेक को मान्य नहीं है। अभी तक का सोच है कि आक्रमण के लिये युद्ध करना बुरा है, किन्तु विवेक बुद्धि एवं चरित्रनिष्ठा अहिंसा के क्षेत्र में और आगे बढ़े तो कल यह भी निर्णय दिया जा सकता है कि किसी भी राष्ट्र द्वारा बचाव के लिये भी हिंसा का सहारा लेना उचित नहीं। वह मान ले कि युद्ध किसी भी अवस्था में उचित नहीं कहा जा सकता है। .
इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि इतिहास में वस्तुतः चरित्र के उत्थान-पतन के चित्र और चरित्र ही प्रधान रूप से अंकित होते हैं। इस कारण इतिहास का मात्र इतिहास के तौर पर ही अध्ययन करना वांछनीय नहीं है। इतिहास का प्रमुख उपयोग तो यह है कि ऐतिहासिक अनुभवों को लेकर चरित्र निर्माण की नई प्रगतिशील राहें खोजी जाए। मानव चरित्र के संचरण की दृष्टि से भारतीय इतिहास का सिंहावलोकन : __ भारतीय इतिहास का आरंभ वहां से माना जाता है जब आर्यों का यहां आगमन हुआ और उन्होंने तथा यहां पहले से रह रही आर्येतर जातियों ने मिल कर एक नई चरित्रशीलता तथा संस्कृति (केरेक्टर एंड कल्चर) का विकास किया। इनका अंशदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। आर्य और द्रविड़ के सिवाय अन्यान्य जातियाँ यहां आती रही और यहां की स्थाई निवासी बनती गई जिनमें ग्यारह जातियों के नाम हैं। इनके बाद आए मुसलमान और ईसाई। इस प्रकार नीग्रो, औष्ट्रिक, द्रविड, आर्य, यूनानी, मूची, शक, आंभीक, हूण, मंगोल, तुर्क, मुस्लिम आदि का परस्पर समागम हुआ है और उससे जिस मिली जुली संस्कृति का विकास हुआ उसी का नाम हिन्दू (सिंधु क्षेत्रस्व) संस्कृति पड़ा। इस संस्कृति की विविधता इस प्रकार है। पूरी दुनिया में तीन रंगों के लोग है-गोरा, पीला, काला। किन्तु भारत में चार किस्में बनी-1. द्रविड़ों से पहले बसे मूल आदिवासी-निवास जंगलों में, 2. द्रविड़ जाति-निवास विंध्याचल के नीचे दक्षिण में, 3. आर्य जाति-निवास पहले उत्तर और फिर दक्षिण में तथा 4. मंगोल जाति-निवास उत्तरी भारत के उत्तरी किनारे पर। भाषा की दृष्टि से आर्य भाषी 75 प्र. श.क्षेत्र में द्रविड भाषी 20 प्र.श. एवं शबर किरात भाषी 3 प्र.श.।यों रक्त. भाषा और संस्कृति तीनों भारत में मिश्रित है तथापि धर्म, संस्कार, भाव, विचार और जीवन विषयक दृष्टिकोणों में एकरूपता ज्यादा है और इसी का सुप्रभाव भारतीय संस्कृति एवं चरित्रशैली की रचना पर पड़ा है।
विभिन्न जातियों के पारस्परिक समागम का वातावरण अधिक प्रबल रहा जिसके कारण
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