Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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मानव चरित्र का संचरण इतिहास के परिप्रेक्ष्य में
चरित्र गठन पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, किन्तु समय का चक्र उत्थान से पतन तथा पतन से उत्थान के क्रम का पूर्णतया निर्वाह करता है। यदि चरित्र निर्माण के अभियान में वांछित तत्परता लाई जा सके तो उत्थान के क्रम को तीव्रता अवश्य प्रदान की जा सकती है। इतिहास क्या होता है?-चरित्र के उत्थान-पतन की कहानियां ही तो:
इतिहास के कतिपय चरित्र नायकों से संबंधित उपरोक्त टिप्पणियों से इस तथ्य का स्पष्ट आभास होता है कि चरित्र के उत्थान-पतन की कहानियां ही इतिहास की मुख्य विषय वस्तु होती है। चरित्र नायकों की चरित्रशीलता का सामान्य जन तथा समाज पर अति अनुकूल प्रभाव पड़ता देखा गया है तो कहीं प्रतिक्रिया स्वरूप नायकों या शासकों की चरित्रहीनता का कटु विरोध भी चरित्र निर्माण के लिये अनुकूल वातावरण बनाता आया है। यह तो एकदम निश्चित है कि इतिहास की अधिकांश घटनाओं पर चरित्र की ही छाप होती है।
मानवीय जीवन के चारित्रिक मूल्य किस प्रकार सिद्ध होते गए और कैसे सिद्ध हुआ करते हैं तथा हम कहां और कैसे आकर पहंचे हैं-इसका स्वरूप समझाना इतिहास का काम है। मानव की विवेक बुद्धि एवं चरित्रनिष्ठा का विवरण क्या और कैसा है-यह इतिहास से समझ में आना चाहिये। यदि यह सब समझ में आता है तो समझना चाहिये कि मनुष्य की विवेक बुद्धि तथा चरित्रनिष्ठा सचारू रूप से कार्य कर रही है और मानव का व्यवहार विवेकपूर्ण चल रहा है। भूतकालीन अनुभवों से कुछ न कुछ सीखते रहने के लिये इतिहास का अध्ययन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि इस मायने में इतिहास एक शिक्षक का कार्य करता है। इतिहास के अनुभवों से मनुष्य एवं समाज की धारणाओं में भी अन्तर आता रहता है जो चरित्र से प्रभावित होता है। जैसे कि प्राचीनकाल में चोरी करने वाले को हाथ काटने का दंड दिया जाता था-इसका भारत के धर्मग्रंथों में तथा करान में भी उल्लेख है। फिर धारणा बदली और माना गया कि कोई भी व्यक्ति चोरी करता है तो सिर्फ अपने ही लिये नहीं बल्कि परिवार के निर्वाह के लिये करता है। समाजवाद के अनुसार प्रत्येक परिवार के भरण पोषण की व्यवस्था करना समाज का दायित्व है। ऐसे में वह व्यक्ति जो चोरी करता है उसका जितना दोष है, उतना ही समाज का भी दोष है यानी कि सामाजिक रचना व व्यवस्था का भी दोष है। तब सोच बदला कि चोरी के अपराधी को दंड देने की अपेक्षा शिक्षा देनी चाहिए तथा समाज में स्थापित होने के लिए उसे आवश्यक सहयोग सुलभ कराना चाहिए ताकि वह चोरी करना छोड़ दे और इस प्रकार अपराध का उन्मूलन हो जाए। इस संबंध में यह आकलन करने की आवश्यकता है कि किस प्रकार इतिहास के अनुभव नई चरित्र प्रणाली को ढालने में मददगार बनते हैं और चरित्र निर्माण के व्यापक कार्य को नए आयाम प्राप्त होते हैं। ___ इतिहास के चरित्र नायकों की भूलों से भी सामाजिक चरित्र पर आघात लगे जिनकी अनुकूल प्रतिक्रिया यह हुई कि चरित्र निर्माण की दिशा में मनुष्य की विवेक बुद्धि और साथ ही चरित्रनिष्ठा का पर्याप्त रीति से विकास होता गया। इतिहास का बहुत बड़ा ग्रंथ है महाभारत और इसका एक प्रसंग है पांडवों एवं कौरवों के बीच द्यूत क्रीड़ा यानी जुआ खेलने का। आज तो ऐसी द्यूत क्रीड़ा का कटु विरोध होगा किन्तु उस समय के क्षत्रियों की प्रथा में छूत क्रीड़ा अनुचित नहीं थी। मुख्य बात यह है
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