Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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विभिन्न धर्मग्रंथों, वादों-विचारों में
चरित्र निर्माण की अवधारणाएँ
साहित्य में समाया विश्व का संरक्षण व संवर्धन
दो भाई थे। एक रंगरैलियों में मस्त रहने वाला भोगी, जो
"वेश्याओं के कोठों पर जाता, उन के सुरीले गाने सुनता, थिरकते हुए नाच देखता और मस्ती मार कर घर लौटता। दूसरा भाई त्यागी, जो नित्य संतों के प्रवचन में जाता, धार्मिक क्रियाएं करता और सन्त दर्शन व संत सेवा करके प्रसन्न होता। यों ये दो भाई हुए भोगी और त्यागी। प्रतिदिन दोनों घर से साथ-साथ ही निकलते और अपनेअपने ठिकाने पर पहुंच जाते।
दोनों भाइयों के लिये एक दिन अति विचित्र बन कर आया। सदा की भांति दोनों अपने-अपने ठिकाने पर पहुंच गये और कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। क्या संयोग मिला कि एक साथ दोनों के आन्तरिक भावों में उथल-पुथल मच गई। भावनाओं का ऐसा तूफान उनके मन-मानस में उठा कि उनका बाह्य तो बाह्य ही रहा, किन्तु आन्तरिकता पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व होने लगी। जो उन दोनों ने कभी सोचा भी नहीं होगा, वैसे परिवर्तन से दोनों के अन्त:करण आन्दोलित हो उठे और अन्तत: वह परिवर्तन अपने अन्तिम छोर तक पहुंच भी गया।
बड़ा भाई पहुंचा था वेश्या के कोठे पर, हमेशा की
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