Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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विभिन्न धर्मग्रंथों, वादों-विचारों में चरित्र निर्माण की अवधारणाएँ
लोकतंत्र के रूप में प्रकट हुई तो सामाजिक विषमताओं के प्रति कड़ा रूख अपनाने वालों की ओर से समाजवाद तथा साम्यवाद (मासिज्म) की विचारधाराएं सामने आई। लोकतंत्र का उद्देश्य रहा कि प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार और अवसर मिले तथा सबके चरित्र का निर्माण हो। चरित्र का निर्माण वामपंथी विचारधाराओं का भी उद्देश्य रहा, किन्तु उनका संबंध चरित्र को कोई महत्त्व मिला, न ही धार्मिकता-आध्यात्मिकता को। परिणाम स्वरूप भौतिक विकास तो हुआ किन्तु मानवीय चरित्र का विकास उपेक्षित रहा। इस स्थिति में जिन-जिन देशों में साम्यवादी शासन व्यवस्था कायम हुई, वहांवहां के शासकों ने अधिकारों के केन्द्रीकरण के कारण तानाशाही रुख अपना लिया और आन्तरिक चरित्र के अभाव में संघर्ष से वे भोगवाद पर उतर आए। यही साम्यवाद के पतन का प्रधान कारण बना।
परन्तु आधुनिक युग में भारत में अंग्रेजों की दासता के विरुद्ध जो स्वतंत्रता-संघर्ष चला, उसमें महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय जन-जन में चरित्रनिष्ठा की ऐसी लहर फैली जिसे चरित्र निर्माण के राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में प्रभावकारी मानी जा सकती है। इन दो विपरीत उदाहरणों से कहा जा सकता है कि आधुनिक युग में जहां नये वादों, विचारों और आन्दोलनों से चरित्र निर्माण के कई प्रश्न सुलझे भी कि सदियों से गुलामी की नींद में सोया अपने चरित्र को भूला भारतीय सजग हुआ और नई चरित्रनिष्ठा से जुड़ा, वही साम्यवाद से प्रभावित देशों में यथार्थ चरित्र का प्रश्न अधिक उलझ गया और साम्यवाद के पतन के बाद भ्रष्टाचार का दौरदौरा फैल गया-मार्क्स का दर्शन और लेनिन का क्रियान्वय, दोनों ने एक बार तो विफलता की चादर ओढ़ ली। ___ चरित्र निर्माण के संबंध में यहां कुछ विचारकों के विचार इस प्रयोजन से उद्धृत किये जा रहे हैं कि जो चरित्र निर्माण के नये अभियान में नई प्रेरणा का संचार कर सके। 1. किसे कहें चरित्र? (महात्मा गांधी): चरित्र के बिना शिक्षा कैसी और वह चरित्र कैसा जिसमें प्रारंभिक निजी पवित्रता का भी अभाव हो? चरित्र की शुद्धि और मुक्ति हृदय की पवित्रता पर आधारित होती है। एक चरित्रशील व्यक्ति अपने आपको किसी भी प्रदत्त दायित्व वहन के लिए योग्य बना लेता है। चरित्र निर्माण का अर्थ है जीवन को गुण सम्पन्न आचरण में रचा-बसा लेना
(केरेक्टर शब्द का विश्लेषण-ग्लोरियस थॉट ऑव गांधी द्वारा एन. बी. सेन)। 2. चरित्र साधना प्रतिपल चलती है (स्व. श्रीमद नानेशाचार्य): सदाचरण एवं सच्चरित्रता को एक शब्द में कहना हो तो वह है शील। शील, चरित्रशील व्यक्तित्व का प्राण होता है। जीवन की सभी वृत्तियों-प्रवृत्तियों तथा गतिविधियों में जो शुभता की रक्षक वृत्ति है वही शील वृत्ति है। शील की साधना अहर्निश की साधना है-मन, वचन एवं काया के प्रत्येक योग व्यापार की साधना है। शील की साधना प्रतिपल चलती है और प्रतिपल के आचार-विचार में उसकी झलक देखने को मिल सकती है। शील की साधना इस प्रकार दैनंदिन की अथवा सम्पूर्ण जीवन व्यवहार की
साधना है, जो श्रेष्ठतम मर्यादाओं में प्रतिफलित होती है (संस्कार क्रान्ति, पृष्ठ 169)। 3. मूल स्वभाव का नाम चरित्र (एच. जेक्शन ब्राउन जुनियर): हमारा चरित्र वास्तव में वह है
जो हमारे प्रत्येक कार्य में झलकता है-वैसे कार्य में जिसके लिये हम सोचते हैं कि उसे कोई नहीं देख रहा है। (टी ओ आई-सेक्रेड स्पेस)।
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