Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
View full book text
________________
नैतिकता भरा आचरण ले जाता है सदाचार के मार्ग पर
तो छोटे-छोटे गरीबों की जेबें काटते हुए भी तनिक नहीं शर्माते-धृष्ट बने रहते हो। चावल, गेहूं में कंकर मिलाते हो, उस तरह के कंकर बनाने का कारखाना चलाते हो और रुपये-आठ आने के चावल, गेहूं खरीदने वालों की तंग जेब को भी नहीं छोड़ते। आप लोगों की बेईमानी की.कहीं हद भी है?
यों दोनों की हकीकत भरी बहस चलती रही। किन्तु आप को सोचना है कि नैतिकता कैसी होती है-जेबकतरे जैसी या फिर उस उघोगपति जैसी? अथवा नैतिकता दोनों के पास थी या किसी के पास नहीं? विचार करना शुरू कीजिए नैतिकता की असलियत पर, उसके रंगढंग और जीवन पर उसके प्रभाव पर। फिर देखिये कि आप उलझते ज्यादा हैं या सुलझ जाते हैं ! नैतिकता का वास्तविक स्वरूप तथा उसके दो पक्ष एवं दो रूप:
नैतिकता शब्द नीति से बना है तो नैतिकता का अर्थ हुआ नीतिसम्मतता। जो कार्य नीति के अनुरूप हो, वे कहलाते हैं, नैतिक कार्य। नीति उसे कहते हैं जो समाज, धर्म आदि द्वारा मान्य होती है। नीति के नियम लिखित ही हो यह जरूरी नहीं। समाज की स्वीकृति नैतिक नियमों के लिये पर्याप्त मानी जाती है। 'नयति इति नीति'-यह नीति की संक्षिप्त व्याख्या है-जो ले जाती है वह नीति। तो प्रश्न स्वाभाविक है कि कहां ले जाती है? प्रत्येक व्यक्ति, समाज, धर्म, वर्ग आदि के अपने उद्देश्य होते हैं और सिद्धान्त व परम्परा से भी उद्देश्य निर्धारित होते हैं। इन्हीं मान्य उद्देश्यों की ओर ले जाने वाली नैष्ठिक शक्ति को नीति कहा जा सकता है। नीति को साधन मान लीजिए जो साध्य की प्राप्ति में सहायक होती है। ऐसी नीतियों का अनुपालनकर्ता का जो जीवन हो वह नैतिक जीवन कहलाता है।
नैतिकता के लिये व्यवहार में लाया जाने वाला अंग्रेजी का शब्द 'मॉरेलिटी' उचित शब्द नहीं है। 'मॉरेलिटी' का सही अनुवाद होगा लोकाचार, जबकि नैतिकता का अंग्रेजी में सही शब्द है 'इथिक्स' यों लोकाचार और नैतिकता का आपस में खास संबंध नहीं। नैतिकता का संबंध होता है सदाचार से। नैतिकता भरा आचरण ही हम को ले जाता है सदाचार के मार्ग पर तथा आगे से आगे बढ़ने की शक्ति देता है।
आचार दर्शन के क्षेत्र में सदा से नीति के दो पक्षों-सापेक्षता एवं निरपेक्षता के स्वरूप को लेकर गहरा चिन्तन होता रहा है। इस दृष्टि से नीति या नैतिकता सापेक्ष भी होती है और निरपेक्ष भी। पापेक्षतावादी मानते हैं कि आचार तथा परस्पर व्यवहार के नियमोपनियम देश.काल. परिस्थिति और व्यक्ति के आधार पर परिवर्तित होते रहते हैं। उनमें अपवाद भले रहे, पर यथासमय बदलाव आता रहता है। आधनिक यग का रूख सापेक्षवादी है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक आदि विचारधाराओं में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं अर्थात् कोई भी विचार परिवर्तन से बच नहीं सकता है। सब में परिवर्तन अवश्यंभावी होता है। सापेक्षवादियों के अनुसार नैतिक नियम सार्वकालिक और सार्वलौकिक नहीं होते। इस पक्ष का विपरीत पक्ष है निरपेक्षतावादियों का। इनकी मान्यता के अनुसार नैतिक आचरण निरपवाद होता है-देश, काल, परिस्थिति तथा व्यक्ति के बदलने पर भी नैतिक आचरण की मल्यवत्ता अपरिवर्तनीय रहती है। जो आचरण शभ है, वह सदैव शभ होगा और जो आचरण अशुभ है, वह सदैव अशुभ ही रहेगा। किसी भी परिस्थिति में शुभ-अशुभ नहीं हो सकता और अशुभ-शुभ नहीं हो सकता और जहां तक मूल्यवत्ता का प्रश्न है, चरित्र के
213