Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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संसार व समाज के कुशल प्रबंधन का एक ही आधार चरित्र
भलीभांति समझ लें कि बुनियादी तौर पर चरित्र निर्माण का प्रश्न मौलिक रहेगा। इस संदर्भ में पूर्व भूमिका की दृष्टि में कुछ सुझाव इस प्रकार हो सकते हैं
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(1) बाह्य निर्माण से पहले आन्तरिक निर्माण की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। सच्चा और अच्छा मानव न बन सका तो समझ लें कि कुछ भी नहीं बन सकेगा। मनुष्यता के निर्माण का आधार भावनात्मक होना चाहिए ।
(2) संसार और समाज के सभी क्षेत्रों में जीवन निर्वाह की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति पहले हो लेकिन दीनहीन और शोषित पीड़ित वर्गों को उचित संरक्षण दिया जाना चाहिए। पूंजीपतियों तथा धनाढ्यों की भावना जगा कर उनकी अतिरिक्त धन सम्पत्ति का समाज हित में त्याग कराया जाए।
(3) सर्वत्र स्त्री और पुरुष का समान स्थान तथा समान सम्मान हो। पुरुष न तो अपने ही को कर्त्ता या भोक्ता समझे और न स्त्री को क्रिया या भोग्या ही । दोनों की स्वतंत्र किन्तु सहयोगी समान सत्ता समझी जानी चाहिए।
(4) भावनात्मक आधार इस प्रकार तैयार किया जाए कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी सहधर्मिणी के सिवाय अन्य सब स्त्रियों को मातृवत् समझे, अपने पास के मर्यादित धन आदि के सिवाय शेष को सामाजिक ट्रस्ट, सभी प्राणियों के प्राणों को आत्मवत् मानते हुए उन रक्षा का उत्तरदायित्व ले यानी कि ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह तथा अहिंसा के भाव सबके आचरण तथा जीवन शैली में रम जाए ।
(5) लोकतंत्र केवल राजनीतिक प्रणाली में न रहकर समग्र जीवनशैली बने, जिसका विस्तार परिवार से विश्व तक तथा आर्थिक-सामाजिक आदि सभी क्षेत्रों में हो। पहले तो राजनीतिक क्षेत्र का शुद्धिकरण आवश्यक है । लोकतंत्र के व्यावहारिक आचरण के साथ प्रत्येक नागरिक का व्यक्तित्व स्वतंत्र स्वरूप ग्रहण करे, ताकि आश्रितता, हीनता या दीनता की दशा न रहे।
(6) समाज में अर्थ की विषमता को दूर करने के साथ कामनाओं (डिजायर्स) पर स्वाभाविक नियंत्रण विधि का अध्ययन किया जाय तथा उपभोग- परिभोग की सामग्री सबकी आवश्यकता के अनुसार समान रूप से सुलभ कराई जाय ।
(7) नई व्यवस्था की रूपरेखा तैयार करने में- (अ) सिद्धांत तथा नीतियाँ प्रारंभ से ही निश्चित हो, (ब) चरित्रशील एवं समर्पित व्यक्तियों को ही नई व्यवस्था हेतु नियोजित किया जाए तथा ( स ) व्यवस्था की प्रणाली निश्चित नीतियों के अनुसार ही कार्यान्वित की जाए। साथ ही हृदय परिवर्तन कराने, चरित्र गठन को प्रोत्साहित करने एवं आचरण को सुधारने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी जानी चाहिए ।
संसार व समाज का कुशल प्रबंधन तथा अहिंसक जीवन शैली का माध्यम
व्यक्ति के व समूह के जीवन में अहिंसा का प्रचलन होगा तभी संसार व समाज में सुरक्षा का भाव पल्लवित हो सकेगा। जन सुरक्षा निश्चित बनेगी तब शान्ति का वातावरण स्थाई रूप ले सकेगा।
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