Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
मिटा कर व्यक्ति व समाज को स्वस्थ बनाना एक महद् कार्य हो गया है।
जब प्रेम टूटता है तो घृणा पैदा होती है। प्रेम त्याग पर पनपता है तो घृणा स्वार्थवादिता से भड़कती है। घृणा सर्वत्र राग-द्वेष की कारक बनती है। विश्व के अधिकांश देशों तथा भारत में भी ऐसा ही हुआ है कि साधनों के दुरुपयोग से व्यक्ति स्वार्थ केन्द्रित बनता गया, उसका दायरा ज्यादा से ज्यादा संकुचित होने लगा और वह अपनी पूर्णता को भूला बैठा। सम्पूर्ण मानव जाति का अपने को सदस्य मानने की बजाय आज व्यक्ति ने परिवार तक से अपने को काट लिया है-संयुक्त परिवारों के बिखरने के पीछे स्वार्थ का भाव ही तो है। स्वार्थ से राग उपजता है और द्वेष से घृणा तथा राग एवं द्वेष से संसार के समस्त विकार उत्पन्न होते हैं (रागस्स हेउं समणुन्न माहु, दोसस्स हेउं अमणुन्न माहुउत्तराध्ययन सूत्र, 32-36 )। राग और द्वेष के बाद कटुता का फैलाव होता है तथा कटुता से हिंसा का। इस हिंसा की कोई सीमा नहीं है, बल्कि इसका कितना विकराल रूप हो सकता है, आज के युग में उसकी कल्पना करते हुए भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह हिंसा किन्हीं दो व्यक्तियों की गुत्थमगुत्था से लेकर राष्ट्रों की गुत्थमगुत्था यानी युद्ध की विभीषिका तक फैल सकती है। वैसे बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में घटे छोटे-बड़े विवाद, साम्प्रदायिक दंगे, जातियों के खूनी झगड़े, आतंकवादी हादसे और युद्ध की गर्जनाएं सभी की याद से मिटे नहीं होंगे। हिंसा की धार भी विज्ञान के दुरुपयोग से काफी पैनी हुई है। अपराधी और आतंकवादी ऐसे आधुनिकतम शस्त्रों का प्रयोग करते हैं जैसे शस्त्र पुलिस और सेना को भी उपलब्ध नहीं होते। आग की हिंसा, अणु, रसायन व जैविक बमों, मिसाइलों आदि के रूप में सर्व-संसार संहारक बन गई है। ___इस संदर्भ में एक सत्य को बार-बार याद करें कि सारी बुरी ताकतों के बावजूद अच्छी ताकतें कम असरकारक नहीं होती है, कमी यही रहती है कि अच्छी ताकतें जागती और कर्मरत बनती है जरा मुश्किल से और यह मुश्किल उठानी पड़ती है प्रबुद्धों, चरित्रशीलों और उत्साहियों की छोटी-सी संख्या को। आज भी यही स्थिति है। आज की लाईलाज दिखने वाली दुर्दशा से भी निराशा का कोई कारण नहीं है। हर हाल में अच्छाई जीतती है और अन्ततः सत्य एवं न्याय की ही विजय होती है। आज का हिंसा भरा विश्व भी बदलेगा, राग-द्वेष पतले पड़ेंगे, घृणा और कटुता की कर्कशता कम होगी तथा प्रेम, नीति, धर्म, सहयोग एवं मानव सेवा की पवित्र गंगा प्रकटेगी और बहेगी। पोस्ट-मार्टम के बाद समझें कि जीवन के यथार्थ को कहां व कैसे खोजें? :
किसी भी परिस्थिति का पोस्टमार्टम (शल्य रूप विश्लेषण) सदा सोद्देश्य किया जाता है। हमारा यह पोस्टमार्टम भी इस उद्देश्य से किया गया है कि आधुनिक युग के विकास चक्र को देखें, उसके अच्छे-बुरे असर को मापें और वर्तमान में आदर्शोन्मुख दिशा का अध्ययन करें। यह अध्ययन हमें अपना वह रास्ता दिखता है जिस पर हम आगे बढ़ें, समाज को आगे बढ़ावें तथा संसार व समाज में उन्नति का नया युग लाने की चेष्टा करें। __ अब तक संक्षेप में संसार के घटना क्रम और उसके विश्लेषण पर कुछ रोशनी डालनी चाहिये और इस रोशनी में खोजना चाहिए कि वस्तुतः इस मानव जीवन की यथार्थता को पाने के लिये हमारी