Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
View full book text
________________
मानव जीवन में आचार विज्ञान : सुख शांति का राजमार्ग
छोर को पकड़ कर ही अन्तिम छोर तक पहुँचा जा सकेगा। संसार में जब भी जहाँ भी किसी बुराई का सामना हो तो उससे छुटकारा पाने का प्रयास मोक्ष हेतु किया जाने वाला प्रयास ही माना जाना चाहिए । मोक्ष की आध्यात्मिक व्याख्या उसका अन्तिम छोर है। इस अन्तिम छोर को ही पकड़े रखें और दूसरी ओर के छोर को छुएं भी नहीं तो क्या अन्तिम छोर हमें तार देगा? दोनों छोरों को थामे रखने से ही सकल मोक्ष हो सकेगा। इस दृष्टि से सभी मानवों के लिए मोक्ष चाहिए और वह सिर्फ अन्त में ही नहीं चाहिए बल्कि जीवनारंभ से ही चाहिए । अतः मोक्ष को मानव जीवन का लक्ष्य मानना सर्वथा समुचित है । अन्तिम मोक्ष प्राप्ति के लिए जैन आचार पद्धति में त्रिविध साधन बताए गए हैं, जो हैंसम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र ( सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः तत्त्वार्थ सूत्र 1/1-उमास्वाति ) । यही समूचे जैन दर्शन का मूल है। ज्ञान और दर्शन की अपने-अपने स्थान पर महत्ता है किन्तु चारित्र के बिना इनकी सार्थकता नहीं है । इस दृष्टि से चारित्र यानी आचार को मोक्ष का प्रधान कारण कहा गया है ( तस्मात् चारित्रमेव प्रधान मुक्ति कारणं - अभिधान राजेन्द्र कोष 6/337)|
तो सिद्ध हुआ कि मानव जीवन की सकल लक्ष्य साधना का मूलाधार है- आचार। आचार ही • जीवन का मुकुट है जिसकी महिमा अचिन्त्य है । आचार जीवन का दर्पण है जिसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को देखा परखा जा सकता है और आचार साधना से उसे उन्नत बनाया जा सकता है । आचार समग्र जीवन को सुन्दर, सुन्दरतर एवं सुन्दरतम बनाता है ।
आचार को विज्ञान के रूप में देखना और समझना है तो जैन साहित्य का गंभीर चिन्तन मनन करना होगा। स्वयं भगवान् महावीर का जीवन आचार का साक्षात् जीवन्त स्वरूप है । आचार मानव की श्रेष्ठता अथवा निकृष्टता का एक थर्मामीटर है । आचार शब्द का अर्थ इतना व्यापक और विशाल है कि उसमें जीवन को निम्नतम स्तर से उच्चतम शिखर तक पहुँचाने वाले समग्र साधनों का समावेश होता है। भारतीय ऋषि महर्षि इस बात पर एकमत हैं कि इन्द्रियों के विषय-उपभोग से वास्तविक आनन्द नहीं मिलता। जो आनन्द मिलने का आभास होता है वह भी क्षणिक और दुःखान्त रूप होता है। इसलिए सच्चा और स्थाई आनन्द तो आचार अर्थात् आचरण से ही प्राप्त होता है क्योंकि वह स्वेच्छा से अपनाया जाता है। यह निर्विवाद सत्य है कि भारतीय संस्कृति में आचार का स्थान सदा ऊँचा रहा, रहता है और रहेगा, क्योंकि आचार ही मानव जीवन की समग्र लक्ष्य साधना का मूलाधार है।
आचार विज्ञान का बहुआयामी स्वरूप : मूल्य एवं मूल्यांकन
धर्म साहित्य में आचार की विभिन्न परिभाषाएँ मिलती हैं, किन्तु अभिधान राजेन्द्र कोष में आचार शब्द की परिभाषा और अर्थ के बारे में समन्वयात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा गया है
अनुष्ठान अथवा प्रवृत्ति मोक्ष के लिए हो या जो आचरण या व्यवहार अहिंसा आदि धर्म से सम्मत एवं शास्त्र विहित हो वह आचार है (आचारो मोक्षार्थमनुष्ठान विशेषः शास्त्र विहितो व्यवहारः इति - 2 / 368 ) । अथवा पूर्व पुरुषों के द्वारा आचरित ज्ञानादि आसेवन विधि आचार कही जाती है तो
123