Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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मानव जीवन में आचार विज्ञान : सुख शांति का राजमार्ग
का लाभ तब भी शान्ति-क्या यही शान्ति तो सेठ की परम उपलब्धि नहीं है? उसका अन्तःकरण प्रबुद्ध हो उठा - सेठ के अर्न्तस्वरूप का दर्शन करके जैसे वह धन्य हो गया। सोचने लगा-सेठ को कहीं भी न अहंकार छूता है और न दैन्य । यह गृहस्थ है या परम योगी । वह विगलित होकर सेठ के चरणों में लोट गया, कहने लगा- जिस शान्ति की खोज में मुनि महाराज ने मुझे यहाँ भेजा था, वह शान्ति मुझे यहाँ साक्षात् मिल गई है । शान्ति कैसे प्राप्त हो सकेगी इसका गुरुमंत्र मुझे आपसे प्राप्त हो गया है। सेठ ने कहा-जिस गुरु ने तुम्हें यहाँ भेजा, उन्हीं गुरु के उपदेश से ही मुझे ऐसा शान्ति का मार्ग मिला है। मैंने कभी भी अपने भाग्य पर अहंकार नहीं किया, न मुझे हीनता का बोध हुआ । मेरे आचार में यह सत्य समा गया कि हानि-लाभ के इस चक्र में मैं कोई कर्त्ता नहीं हूँ, बस निमित्त मात्र हूँ - विश्व में गति चक्र की बहुत बड़ी मशीन का केवल एक छोटा सा पुर्जा। इस कारण न मुझे अहंकार होता है और न ही हीनता या शोक का अनुभव ।
अपने आपको सब कुछ कर सकने वाला कर्त्ता मान लेने का जो अहंकार है, वही आचार निष्ठता अथवा चरित्र निर्माण का सबसे बड़ा शत्रु है और इस आत्म शत्रु से विजय प्राप्त करने के लिए समस्वभाव को ढालना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। यही बात उपरोक्त दृष्टांत से सिद्ध होती है ।
आचार भारतीय चिन्तन का मूल केन्द्र और वही संस्कृति का प्राण
भारतीय संस्कृति धर्म प्रधान रही है और धर्म का प्राण होती है, उसे पाने के लिए की जाने वाली साधना। साधना एक पद्धति होती है जिस का आधार होता है आचार।' आचार भारतीय चिन्तन का मूल केन्द्र रहा है । यही मूल केन्द्र संस्कृति और उसके माध्यम से समाज को प्राणवान बनाता है। अतः आचार को ही धर्म का प्रेरक, प्रहरी और प्रस्तोता मानना होगा। इस आचार साधना के बल पर ही माना गया कि मोह साथ न हो तब भी अकेले ही धर्म का आचरण करना चाहिए (एगे चरेज्ज धम्मअभिधान राजेन्द्र कोष 1/544 ) । यही बात उपनिषदों में भी कही गई है कि धर्म पर चलो ( धर्म चर) । तथागत बुद्ध ने भी आचार को प्राथमिकता दी है। आचार के नियमों की व्याख्याएँ विभिन्न हो सकती है और सभी आचार पद्धति का विश्लेषण अलग कर सकते हैं किन्तु इस सत्य को मानने में कोई विवाद नहीं है कि आचार ही श्रेष्ठ धर्म है। जैनागमों में कहा गया है कि आचार ही पहला धर्म है (आयारो पढमो धम्मो ) । मनुस्मृति में भी यह मान्यता पुष्ट हुई है कि आचार पहला धर्म है और वह मनुष्यों के लिए कल्याणकारी है ( आचारः प्रथमो धर्मो, नृणां श्रेयस्करो महान्) । इस दृष्टि से भारतीय परम्परा में आचार का जो व्यापक एवं विशिष्ट विवेचन मिलता है, वैसा अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलता। भारतीय साधना की हर सांस जैसे आचार की सांस होती है और प्रत्येक चरण आचार का चरण होता है। यही कारण है कि भारत में चाहे व्यक्तिगत जीवन हो या पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन हो या धार्मिक जावन - सर्वत्र ही आचार की महिमा गाई जाती है - आचार का स्वर मुखरित होता है।
वास्तविकता भी यह है कि मानव जीवन में पग-पग पर और उससे संबंधित विविध साधनाओं में आचार का योगदान सर्वोपरि होता है। यह आचार ही है जो जीवन को सौम्य, निरभिमानी, निर्मल, सात्विक तथा सर्वांगपूर्ण बनाता है । आचार साधना ऐसी दिव्य साधना है जिसके बल पर गृहस्थ और
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