Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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संसार व समाज के कुशल प्रबंधन का एक ही आधार चरित्र
चरित्रवान व्यक्तित्व से ही मानवता का कल्याण
ग्रंथों में उल्लेख है कि जब युगलियों का युग था। तब
एक ही युगल (एक पुत्र तथा एक पुत्री) सन्तान उत्पन्न होती थी । वही युवा होने पर पति-पत्नी बन जाते थे तथा युगल का क्रम चलता रहता था। वे प्रकृति के उत्पादों पर निर्भर थे, जो उन्हें भरपूर मात्रा में प्राप्त होते थे, अतः वे अर्जन विधि जानते ही नहीं थे। उन्हें उसकी जरूरत ही नहीं थी । सब प्रकृति का प्रबंध था, उन्हें अपने प्रबंधन की कोई आवश्यकता नहीं थी । परन्तु धीरे-धीरे प्रकृति के उत्पादों में कमी आने लगी, तब उनके बीच टकराव शुरू हुआ। यह संघर्ष बढ़ता रहा, ज्यों-ज्यों उत्पाद घटते रहे। इसी समय में भगवान् ऋषभदेव का शासन प्रारंभ हुआ और उस समय संसार तथा समाज में सर्वांगीण कुशल प्रबंधन की उपादेयता समझ आ गई । जनता को अर्जन- कुशल नहीं बनाया गया तो अराजकता फैलने की आशंका उत्पन्न हो गई।
ऋषभदेव चरित्रसिद्ध पुरुष थे और वह ऐसा सुदृढ़ आधार था कि कुशल ही नहीं, आदर्श प्रबंधन की रचना हो गई जिससे न केवल आर्थिक सुप्रबंधन का स्वरूप ही सामने आया, अपितु एक आदर्श जीवन शैली की भी