Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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मानव जीवन में आचार विज्ञान : सुख शांति का राजमार्ग
के बाहर से आया और उसके प्रचारक वे लोग बने जो इस देश पर विजय पाकर शासन करने लगे। इतिहास बताता है कि अकबर बादशाह के अलावा अन्य शासकों ने जोर-जबरदस्ती से ही इस्लाम का प्रचार किया और औरंगजेब ने तो जोर जबरदस्ती की भी हद कर दी। यों इस्लाम शब्द का अर्थ शान्ति होने के बावजूद इसके धर्मानुयायियों के व्यवहार में हिंसा की ही प्रबलता रही है। सिख धर्म को बादशाहों के जुल्म झेलने पड़े-इस कारण सिख गुरुओं का बहादुराना मिजाज रहा। बाबर के दुर्व्यवहार के बावजूद गुरु नानक ने बदले की भावना से कार्य नहीं किया, न ही अपने अनुयायियों को हिंसा की ओर धकेला। गुरु अर्जुनदेव भी क्षमाशील रहे, परन्तु नवमे गुरू तेग बहादुर को अन्याय के विरुद्ध हथियार उठाने पड़े, फिर भी हिंसक विरोध आम नहीं बना। मुगलों के हाथों दसवें गुरु गोविन्दसिंह को भारी आतंक का सामना करना पड़ा इसलिए उन्होंने बैशाखी के दिन अमृत चखाकर खालसा के रूप में संत सिपाही की टोलियाँ धर्मयुद्ध के लिए बनाई। कहने का अभिप्राय यह है कि हिंसा से अहिंसा की ओर बढ़ने का ऐसे कई कारणों से क्रमिक विकास धीमा रहा। ईसाई धर्म में करुणा एवं मानव सेवा के व्यवहार का स्थान ऊँचा रहा। अहिंसा को सबसे बड़ी विजय महात्मा गांधी ने दिलाई। उनका अहिंसा का प्रयोग राष्ट्रीय स्तर पर हुआ जिसका सुप्रभाव न केवल इस देश पर बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा। वर्तमान युग में देखें तो पूरी दुनिया एक प्रकार से अहिंसा का समर्थन कर रही है। इस्लाम के जेहाद के आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका सहित अनेक देशों ने कमर कसी है कि इसके नाम पर हिंसा को जारी नहीं रखने देंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में युद्ध रोकने के अनेक
अहिंसक उपाय अपनाए जाते हैं तथा वार्ता-चर्चा के जरिए समस्याएं व विवाद सुलझाने पर पूरा बल दिया जाता है।
आज जबकि अहिंसा का प्रसार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पूरे संसार में हो रहा है तो अहिंसा को परम धर्म मानने वाले विचारकों, धर्मों तथा वर्गों को अहिंसा के त्वरित विस्तार के लिए कठिन प्रयास करने चाहिए। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बाकी सारी चीजें जल्दी ही हाशिए पर चली जाएगी और अहिंसा ही सब धर्मों के सार रूप में विचार व व्यवहार में अपनाई जाएगी। जीवन शैली में अहिंसा को प्रधानता दे पाने में काफी समय लगा है और अभी भी समस्या है कि समग्र रूप से अहिंसा का इतना व्यापक विस्तार अवश्य हो जाए कि कम से कम धर्म के नाम पर तो जनता हिंसा में न उलझे जैसी कि कई बार हिन्दू मुस्लिम या अन्य साम्प्रदायिक दंगे घटित हो जाते हैं। अहिंसा का भविष्य पूरी तरह सुन्दर है किन्तु उसे शीघ्र लाने के लिए चरित्र निर्माण के अभियान चलाए जाने चाहिए और अहिंसा को जीवन के सभी क्षेत्रों में रमा देना चाहिए। अहिंसा ही एक ऐसा सिद्धान्त है जो मानव जाति ही नहीं समस्त प्राणियों के साथ हमारे सम्बन्धों की विवेचना करता है और सोचने को विवश करता है कि हम कितने सभ्य हैं और कितना होना है।
आचरण का आधार जीवन का परम सुधार - यह मानव जीवन जो हमें प्राप्त हुआ है, अतीव दुर्लभ कहा गया है तो क्या ऐसी दुर्लभ प्राप्ति यों ही गंवा देनी चाहिए? किसी के हाथ एक मूल्यवान रत्न आ जाए तो क्या वह उसे फेंक देगा? मूर्ख की बात अलग है, समझदार ऐसा कदापि नहीं करेगा। चिन्तनीय यह है कि हमें इस दुर्लभ जीवन का
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