Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
आवे। ऐसी ही एक कहानी है जो आप को आचारनिष्ठ बनने तथा शान्ति की राह पर खोजने के महद् कार्य में प्रेरक बनेगी। ___एक मुनि के पास एक बार एक भक्त पहुँचा। उसने भावपूर्वक वन्दन किया और कहा-महाराज! मेरे मन को शान्ति प्राप्त हो सके-ऐसा कुछ उपदेश दीजिए, मुनि ने उत्तर दिया-'सुनने से देखने का ज्यादा असर होता है। मैं तुम्हें ऐसे व्यक्ति के पास भेज रहा हूँ जिनके जीवन की झलक पा कर तुम्हें शान्ति का मार्ग मिल जाएगा।' भक्त प्रसन्न हआ. बोला-'वे आदर्श पुरुष कौन हैं? मैं शीघ्र उनकी सेवा में पहुँच जाना चाहता हूँ।' मुनि ने अमुक नगर के नगर सेठ का नाम बताया और उनके पास पहुँचने का निर्देश दिया। ___भक्त शीघ्रातिशीघ्र नगर सेठ के वहाँ पहुँच गया, उसने उनसे निवेदन किया-अमुक मुनि महाराज ने उसे उनके पास भेजा है। कृपा करके मुझे शान्ति का मार्ग बतलाइए। सेठ ने उस भक्त को एक पारखी दष्टि से ऊपर से नीचे तक देखा और कहा-तम यहाँ कछ दिन मेरे साथ रहो और सब कछ देखते रहो। भक्त कछ दिन वहां रहा और जो कुछ उसकी आँखों के आगे घटता-गजरता वह रुचिपूर्वक देखता रहता।
सेठ ने भी उसके बाद कई दिनों तक न कुछ पूछा और न अपनी ओर से उसे कुछ कहा। सेठ तो रात-दिन अपने काम धंधे में जुटे रहते। उनके वहाँ सैंकड़ों व्यापारी आते-जाते और मुनीम गुमाश्ते ढेर सारे बही खाते लिखते रहते और सेठ सब में व्यस्त रहते। देखते-देखते भक्त घबरा गया, सोचने लगा कि जो स्वयं रात दिन माया के चक्कर में फँसा है और जिसे पलभर की भी शान्ति नहीं है, भला वह उसे क्या शान्ति का मार्ग बताएगा? मुनि ने मुझे बिना सोचे समझे कहाँ भेज दिया? ___ एक दिन सेठ अपनी गद्दी पर बैठा था और भक्त भी पास ही में बैठा था। तभी एक मुनीम घबराया हुआ आया और बोला-सेठ साहब! गजब हो गया। अमुक जहाज जिसमें अपना दस लाख का माल लदा हुआ था अब तक भी वह बन्दरगाह पर नहीं पहुंचा है। पता चला है कि समुद्री तूफान में फँसकर जहाज कहीं डूब गया है। सेठ ने गंभीरता पूर्वक कहा-मुनीम जी! शान्त रहो। घबराते क्यों हो? डूब गया तो क्या हुआ? क्या यह अनहोनी है? प्रयत्न करने पर भी डूबने से जहाज को नहीं बचाया जा सका तो नहीं बचाया जा सका। अब बिखरे हुए दूध पर घबराना कैसा? ___ उस वार्तालाप को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन फिर मुनीम जी दौड़े-दौड़े आए और खुशी से नाचते हुए से बोले-सेठ साहब! भारी खुशखबरी है। जिस जहाज को हम डूब गया समझ रहे थे, वह अब सही सलामत बन्दरगाह पर पहँच गया है। हमारा माल उतरने से पहले ही दगने भाव में बिक गया जिससे हमें दस की बजाय बीस लाख की धनराशि प्राप्त हो गई है। सेठ तब भी शान्त रहेवैसे ही गंभीर । सेठ ने उसी पहले जैसे शान्त मन से कहा-ऐसी क्या बात हो गई? अनहोनी तो कुछ नहीं है। फिर फालतू में फूलना और खुशी से नाचना कैसा? हानि-लाभ तो अपने भाग्य से जुडे हुए हैं, हम क्यों इसके पीछे कभी रोएं और कभी हँसें?
भक्त ने यह सब देखा तो वह स्तब्ध रह गया। दस लाख की हानि तब भी शान्ति और बीस लाख
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