Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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क्या विश्व की विकृत व्यवस्था मानवीय मूल्यों की मांग नहीं करती?
मानवीय मूल्यों की सुरक्षा एकमात्र चरित्र निर्माण से!
मा नव क्या था, कैसा हुआ और अब किस प्रकार के
'रूप-स्वरूप में रंग गया है-इस का सम्यक् परिचय करायेगी ये तीन झलकियाँ ! __ पहली झलक : राजा मेघरथ (या राजा शिवि) अपनी राज्य सभा में सिंहासन पर बैठे राज-काज संबंधी चर्चा कर रहे थे तभी अचानक एक फड़फड़ाता हुआ लहूलुहान कबूतर उनकी गोद में आ गिरा। वह थर-थर कांप रहा था। उन्होंने उसकी पीठ पर अपने मृदुल हाथों का स्पर्श देते हुए आश्वस्त किया-'जब तम मेरी शरण में आ गए हो तो भय मुक्त हो जाओ। अब तुम्हारा जीवन सुरक्षित है।' तभी फड़फड़ाता हुआ बाज भी सभागार में पहुंच गया, आवेश के साथ बोला-'यह कबूतर मेरा शिकार है, आप इसे लौटा दीजिये।' राजा तनिक से चकित हुएकबूतर आया और यह बाज आया-यह सब क्या हैं?
राजा ने कहा-'यह कबूतर मेरी शरण में आ चुका है और मैं इसे जीवन का आश्वासन दे चुका हूं सो यह तो तुम्हें नहीं मिलेगा। इसके बदले में तुम चाहो सो मांग लो। शरणागत की रक्षा हमारा धर्म है।' बाज ने धृष्टतापूर्वक कहा-'ठीक है, मैंने अपने भोजन के लिये इसे अपना शिकार
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