Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
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विशाल जनसंख्या की असीमित इच्छाओं पर नियंत्रण के लिये स्वयं के सिवाय अन्यों का असरदार नियंत्रण भी होना चाहिए।
स्व पर स्व के नियंत्रण के लिए अनेक धर्म दर्शनों ने मार्ग सुझाया है और जैन दर्शन ने तो ऐसा अनुपम मार्ग सुझाया है कि स्व के नियंत्रण का प्रभाव पूरे समाज पर पड़े। जैनों की अहिंसक जीवनशैली, अपरिग्रहवादी विचारधारा आदि का ऐसा मार्ग है जिसके अनुसार न सिर्फ धन, सम्पत्ति की ही, बल्कि उपयोग उपभोग के सभी पदार्थों की भी मर्यादा ग्रहण करनी होती है ताकि एक ओर संग्रह वृत्ति न बढ़ जाए तो दूसरी ओर सभी पदार्थों का समाज में विकेन्द्रित वितरण होता रहे। मूल में सदाचार की यही प्रेरणा है कि प्रत्येक पदार्थ की सीमा निश्चित करो, आचरण की मर्यादाएं बनाओ और पाशविक वृत्तियों से बच कर रहो ।
आज के विकसित विज्ञान के युग में सुख सुविधाओं के इतने साधनों और उपकरणों की. उपलब्धि हुई है कि इच्छाओं के दौर दौरे को नियंत्रण में ले पाना स्वयं व्यक्ति के लिये असाध्य जैसा हो गया है। ऐसे में सामाजिक नियंत्रण से ही काम बन सकता है। यह नियंत्रण राज्य शक्ति का भी हो सकता है तो सामूहिक संगठनों का भी ! जिससे व्यक्ति की मनमानी नहीं चलेगी और उसे निर्धारित मर्यादाओं के अनुशासन में चलना पड़ेगा। सामाजिकता एवं परस्परता का भी आज ऐसा विकास हो गया है कि व्यक्ति को निश्चित सीमाओं के भीतर भौतिक उन्नति करने के काम में इस शक्ति का सदुपयोग किया जा सकता है। वैसे भी समाज को आज इस रूप में सुगठित करना होगा कि वह सामान्य व्यक्ति के विकास पथ को कांटों भाटों के बिना समतल भूमि पर सुगम बनावें ताकि व्यक्ति अपने आत्म बल को समेट कर उस पर द्रुत गति से चल सके और अपने साध्य को पा सके।
व्यवस्था की समूची प्रणाली अहिंसा पर आधारित की जाए :
आश्चर्य न करें, ये परमाणु बम और अन्य अतिघातक शस्त्र अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे हैं। यह जो शक्ति प्रकट हुई है तो उसकी पहली सार्थकता अणुबम के रूप में पहचानी गई है। यह पहली बार है कि सम्पूर्ण विश्व ने तथा प्रत्येक मानव ने हिंसा की भीषण संहारक शक्ति का परिचय पाया है और जानकारी ली है कि वह हिंसा का कितना बड़ा दारुण उपकरण है। जापान के नगर - हिरोशिमा और नागासाकी पर जब अणुबम गिराये गये थे और उसके कारण जैसा महाविनाश का दृश्य सबके सामने उपस्थित हुआ था, सबकी आंखें खुल गई हैं कि इन अणु अस्त्रों के धारक देश के शासकों के मन की तनिक सी विकृति किस प्रकार सारे संसार को ध्वस्त कर सकती है। अभी तक इसी कारण किसी भी परमाणु सम्पन्न राष्ट्र ने फिर से अणु अस्त्र का प्रयोग करने की भूल नहीं की है।
सबको यह अनुभव हो गया है कि हिंसा का भाव किस सीमा तक घातक हो सकता है और इसीलिये अहिंसा का विचार कितना आवश्यक बन गया है। हिंसा की अति ही आज अहिंसा का पाठ पढ़ा रही है। अनेकों धर्मशास्त्र तथा दर्शन साहित्य इतने काल से जिस कठोर सत्य को मानव मन
निकट प्रत्यक्ष नहीं कर पाए। हिंसक कहे जाने वाले इस अणु आयुध के आविष्कार ने वह पाठ मानव के मानस में एक साथ उतार दिया है। यह विचारणीय वस्तु स्थिति है कि इतिहास में से हिंसा