Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
आलोचनाएं प्रकट होती थी जिनके माध्यम से मूल दार्शनिक मान्यताओं तथा धार्मिक तत्त्वों के संदर्भ में व्यापक साहित्य लिखा गया।
भारतीय साहित्य के इस रूप में हुए प्रसार ने कई विदेशी विद्वानों का ध्यान भी आकर्षित किया। उन्होंने इनका अध्ययन किया तथा अनेक शास्त्रों, सूत्रों का जर्मन, अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद किया और अपनी टिप्पणियां लिखी। जर्मन विद्वान् एफ. मेक्स मूलर, जार्ज बुल्हर, जेम्स लग्गी, एल. एच. मिल्स, हरमन जेकोबी, जुलियस जेली आदि विद्वानों ने सम्पूर्ण भारतीय दार्शनिक तथा धार्मिक साहित्य पर पूरी सीरीज प्रकाशित की है, जिसमें 50 ग्रंथ हैं । इस सीरीज में संसार भर के मूल ग्रंथों को सम्मिलित किया गया है। जिनमें मुख्य है- उपनिषद, उत्तराध्ययन एवं सूत्रकृतांग सूत्र, भगवत्गीता, धम्मपद, अन्य बौद्ध सूत्र, संदर्भ पुंडरिका, अन्य जैन सूत्र, वैदिक ऋचाएं, वेदान्त सूत्र, चीन के पवित्र ग्रंथ, कुरान, अथर्व वेद के मंत्र, गृह सूत्र आदि। इस सीरीज का अन्तिम 50 वाँ ग्रंथ इंडेक्स है तथा सीरीज का नाम 'पूर्व के पवित्र ग्रंथ' (सेक्रेड टेक्स्ट्स ऑव दी ईस्ट) है। जैन सूत्रों का सम्पादन मुख्यतः मेक्समूलर तथा हरमन जेकोबी ने किया है। इन सूत्रों की गाथाओं का अंग्रेजी में अनुवाद सटीक है तथा भूमिकाओं को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि इन विद्वानों ने छोटे-छोटे बिन्दुओं का भी शोध की दृष्टि से गहरा अध्ययन किया है।
विचार मंथन का क्रम भारत में शास्त्रार्थ के बाद खंडन-मंडन के रूप में चलता रहा। एक पक्ष अपने मत का मंडन करता था तो दूसरा पक्ष उसका खंडन। रूप शास्त्रार्थ का ही था, किन्तु वादविवाद का स्तर निम्न कोटि का होता गया, जिसका परिणाम था कि विचार मंथन कम और सिर फुटौबल ज्यादा होने लगा, क्योंकि इस प्रणाली का उद्देश्य निष्कर्ष निकालना नहीं बल्कि अपनी जो भी मान्यता हो तो, उसमें सत्यासत्य को देखे बिना किसी भी तर्क से उसकी पुष्टि करना था। भौतिक विज्ञान की प्रगति युग परिवर्तनकारी सिद्ध हुई है :
आध्यात्मिक ज्ञान की समुन्नति के बाद भौतिक विज्ञान की प्रगति की मुख्य शताब्दी रही है बीसवीं शताब्दी और इस शताब्दी के अन्त तक विज्ञान की प्रगति न केवल आश्चर्यकारी, अपितु युग परिवर्तनकारी सिद्ध हुई है। इस प्रगति के विभिन्न पहलुओं की संक्षिप्त झलक इस प्रकार है___ बाह्य अन्तरिक्ष में जीवन : वैज्ञानिक बाह्य अन्तरिक्ष में जीवन की खोज करने में जुटे हुए हैं। इस मान्यता का आधार यह है कि पृथ्वी पर उल्कापिंडों की वर्षा में जीवन की आधारभूत संरचनाएंअमीनो अम्ल. साइरोसीन (डी. एन. ए. अण) पेरेफीन सदश अण. जीवाश्म शैवाल व परागकण आदि पाये जाते हैं। इन्हें जैविक कण माना जाता है। बाह्य अन्तरिक्ष के पिंडों से आने वाले कृत्रिम संकेतों का भी रेडियो दूरदर्शी से अंकन किया गया है। अनुमान है कि सौर परिवार में पृथ्वी जैसे अन्य सजीव ग्रह भी विद्यमान हों। अन्तरिक्ष जैविकी के विषय में गहरी खोज जारी है।
चिकित्सा क्षेत्र की नूतन दिशाएं : चिकित्सा क्षेत्र में नये भौतिकी उपकरणों-लेजर, सुपर कंडक्टर्स, माइक्रोवेव, ट्रांसमीटर्स, मेंगनेट, पारर्किल एक्सेलेरेटर्स आदि का आविष्कार हुआ है। क्रिटोन का स्वचालित चिकित्सालय भी कार्यरत हुआ है। शरीर के भीतर प्रतिरोधी पद्धति (इम्यून
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