Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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ज्ञान विज्ञान का विकास एवं सामाजिक जीवन की गति
अविद्या से ही तृष्णा-आसक्ति आदि के संस्कार उत्पन्न होते हैं अतः अविद्या के विनाश से ही दुःख का निदान होता है। आठ सूत्रीय आर्य मार्ग का निरूपण किया गया है-सम्यक् दृष्टि, संकल्प, वाक्, कर्मान्त, आजीव, व्यायाम, स्मृति तथा समाधि। यह अष्टांग मार्ग बौद्ध नैतिक जीवन का सार है।
ईसाई धर्म : पैगम्बर ईसा मसीह ने यह धर्म चलाया जिसका मुख्य लक्ष्य मानव सेवा है। ईसाई चर्च के तीन सम्प्रदाय हैं- 1. ग्रीक, 2. रोमन केथोलिक और 3. प्रोटेस्टेन्ट। इसका आधार ग्रंथ है बाईबिल, जिसमें पुराने व नये सिद्धांतों (टेस्टामेंन्ट्स) का विवेचन है। गिरजाघर ईसाई धर्म के गुरुओं (बिशप-फादर) के उपदेश व प्रार्थना के स्थल होते हैं। सिद्धांतों में परमात्मा के प्रति आस्था, सब जीवों प्रति समदृष्टि, सत्य भाषण, दीन हीन की सहायता आदि मुख्य है।
इस्लाम धर्म : पैगम्बर मोहम्मद साहब की वाणी मुख्य ग्रंथ कुरान में संग्रहित है-वही धार्मिक, नैतिक, सामाजिक आदि आदेश-निर्देशों का स्रोत । इस्लाम शब्द का अर्थ है शान्ति। कुरान के मुख्य सिद्धान्त हैं-धर्म में हिंसा नहीं करना, कुफ्र को बर्दाश्त नही करना, सबको भाई-बहन समझ प्यार करना व नफरत नहीं करनी, खुदा को सब कुछ मानना आदि। प्रत्येक मुस्लिम का जाति फर्ज-1. जकात दे, 2. रोज चार बार नमाज पढ़े, 3. सलाम दुआ करे, 4. रमजान में रोजा रखे और 5. मक्का की हज करे। इसके सिद्धान्तों में 'सोऽहम्' की तरह अनहलक की मान्यता है, किन्तु परिस्थितियों के अनुसार मुसलमानों में कट्टरता ज्यादा पनपी और उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
सिख धर्म : गुरु नानक सिख धर्म के संस्थापक थे। जिस समय में इस धर्म का प्रवर्तन हुआ उस समय मुगल बादशाहों के धार्मिक अत्याचार हुआ करते थे, अतः इसमें वीर भाव का अधिक समावेश है। जिसको अमृत चखा दिया वह जैसे धर्म का सैनिक बन गया। गुरुद्वारा सिखों का धर्मस्थल होता है जहां ग्रंथ साहिब का पाठ व प्रवचन होता है। गुरु परम्परा में सिख धर्म का विकास हुआ। इसका सुधारवादी दृष्टिकोण है।
पारसी धर्म : यह प्राचीन धर्म है तथा पैगम्बर जुरोश्त्र द्वारा प्रवर्तित हुआ। अग्नि पूजा इनका मुख्य कर्मकांड है। व्यवहार में पूर्ण पवित्रता इस धर्म की कुंजी है। मुख्य ग्रंथ अवेस्ता है जिसमें सात सिद्धांत वर्णित हैं। दार्शनिक परम्परा, तात्त्विक चिन्तन आदि से होता रहा विचार मंथन :
प्राचीन काल में शास्त्रार्थ की परम्परा बहुलता से प्रचलित थी- इसे विद्वानों की कुश्ती का नाम दिया जा सकता है। अपने पांडित्य को विजयी प्रतिष्ठित करने का यह उपाय था जो अधिकतर राज्याश्रय में सम्पन्न होता था। विद्वानों की हार जीत के डंके बजते थे, जीते हुओं को पालखी, सरोपाव, जागोर आदि से सम्मानित किया जाता था जिससे विद्वानों की प्रतिष्ठा बढ़ती थी।
शास्त्रार्थ परम्परा का सबसे बड़ा लाभ यह था कि इस बहाने दार्शनिक मंतव्यों तथा धार्मिक तत्त्वों पर उपयोगी विचार मंथन होता रहता था। इस विचार मंथन से स्थापनाओं की पुष्टि होती थी तो नईनई टीकाओं का जन्म होता था। आलोचना के इस मार्ग से उपयोगी संशोधनों के द्वार भी खुलते थे। इस प्रकार मूल ग्रंथों पर अन्यान्य आचार्यों एवं विद्वानों की टीकाएं, नियुक्तियां तथा अन्य प्रकार की