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की भाषा जानने वाला, दूसरा स्वामी के चित्त को पहचानने वाला, तीसरा स्त्री-पुरुषों के लक्षणों को समझने वाला और चौथा रथ को चलाने की कला में प्रवीण है ।
महाराजाने कलाकारों को बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पास रख लिया । ठीक है गुणों का आदर कहां - नहीं होता ? कहा भी है
" गुणाः पूजा-स्थानं गुखिषु न च लिङ्गं न च वयः " अर्थात् सर्वत्र गुणों की ही पूजा होती है । गुणियों में वय या चिन्ह नहीं देखा जाता ।
थकावट से और भोजन आदि कर्मों से निवृत्त होकर महाराजा उस रमणीय वन- प्रदेश में स्वतंत्रता के साथ घूमते हुए प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने लगे । निर्मल जल से लहराती नदी प्रवाहों में जल क्रीड़ा का अपूर्व आनंद लेने लगे । अनेक तरह के फल फूलों से लदे हुए पेड़ों की सघन छाया में बन - विनोद करते हुए महाराजा प्रतापसिंह अपने सामंतों मंत्रियों परिचारकों के साथ वापस अपने डेरे में लौट आये ।
सूर्य अस्ताचल की ओट में छिपने लगा। आकाश लाल पोले बादलों से घिरता हुआ अन्धकार के मुंह