________________
(१२ ) बंधा हुआ था उसमें एक रत्नजटित सुवर्ण पलंग पर लेटे हुए महाराजा अपनी थकावट को दूर कर रहे थे। सुन्दर जरी की पोशाक पहने हाथों में सोने चांदी के दण्ड लिये द्वार-पाल मौन मुद्रा में खड़े थे । डेरे के चारों ओर हाथों में नंगी तलवारें लिये हुए सेना के चुने हुए सैनिक पहरा लगा रहे थे।
चारों ओर का वातावरण शान्त था। कभी २ आम के पेड़ों पर बैठी हुई मदमाती कोयल की कूक और मकरंद के लोभी भँवरों की गूज कुछ क्षण के लिये शान्ति को अवश्य भंग कर देती थी। ऐसे प्रसंग में कोई चार कला वान् द्वारपाल के पास आकर बोले कि हम महाराज के दर्शन चाहते हैं। उनकी इस बात से प्रेरित हो द्वारपाल ने महाराज को सूचित किया । महाराजा प्रतापसिंह गुणियों का समादर करने वाले थे, अतः उन्हें अपने पास लाने की माज्ञा देदी । राजाज्ञा से वे चारों बड़े विनीत भाव से महाराजा के पास पहुँचे। स्वागत-शिष्टाचार के बाद महाराजा ने उनसे परिचय पूछा, तब उन कलाकारों ने अपनी ओज भरी वाणी से निवेदन किया, कि महाराज ! हम श्री गुणन्धर कलाचार्य के शिष्य हैं। आपके श्री चरणों की सेवामें रहना चाहते हैं । हम में से एक पक्षियों