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आकर्षण तथा मोहन प्रयोग
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आकर्षण तथा मोहन प्रयोगों के विषय में 'आकर्षण' का अर्थ है--किसी को अपनी ओर आकर्षित करना और 'मोहन' का अर्थ है--किसी को अपने ऊपर मोहित करना । ये दोनों क्रियाएँ वशीकरण की ही अङ्गभूता हैं । अर्थात् आकर्षण एवं मोहन क्रियाओं के द्वारा साध्य-व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित एवं मोहित करके अपने वश में किया जा सकता है।
प्रस्तुत प्रकरण में विभिन्न प्रकार के आकर्षण तथा मोहन सम्बन्धी प्रयोगों का उल्लेख किया गया है।
स्मरणीय है कि जब किसी भी सामान्य उपाय से कोई व्यक्ति स्त्री या पुरुष, राजा या दुश्मन अपने प्रति आकर्षित न हो सकें और उस स्थिति में स्वयं को मानसिक, शारीरिक अथवा किसी अन्य प्रकार की हानि होने की सम्भावना हो, उस समय इन मन्त्रों का प्रयोग मनोभिलाषा की पूर्ति करता है।
सामान्यतः इन प्रयोगों का उपयोग जीवन रक्षा, स्वार्थ-साधन अथवा विपत्ति से त्राण पाने के लिये किया जाता है । अतः जब अनिवार्य आवश्यकता अनुभव हो, तभी इन प्रयोगों का साधन करना चाहिये। किसी पर-स्त्री के प्रति इन प्रयोगों का साधन तभी करना चाहिये, जब कि उसके बिना स्वयं की प्राण-रक्षा असम्भव अनुभव होतो हो। दुराचार अथवा किसी को लज्जित करने के उद्देश्य से इन प्रयोगों का साधन वजित है।
आकर्षण मन्त्र (१)
मन्त्र-"ॐ आकर्षय।"
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