________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शत्रु-पीड़न प्रयोग
शत्रु, पीड़न के विषय में
शत्रु यदि बलवान हो और समझाने-बुझाने, अनुनय-विनय अथवा किसी अन्य शान्ति पूर्ण उपायों के द्वारा भी हठधर्मी पर आमादा होकर हानि पहुँचाने का इच्छुक हो, उस स्थिति में शत्रु-पीड़न विषयक प्रयोगों का साधन करना चाहिए।
___ इस करण में शत्र-पीड़न के अनेक प्रयोगों को प्रस्तुत किया गया है। इनका प्रयोग करते समय विवेक-बुद्धि से काम लेना आवश्यक है। उदाहरणार्थ यदि शत्रु केवल बदनामी ही करता फिरता हो तो उसके प्रति मुखस्तम्भ प्रयोगों का साधन करना चाहिए। इससे उसका मुह बन्द हो जायेगा । न्यायालयों में मुकदमे आदि के समय शत्रु पक्ष कोई हानिकारक बयान न दे सके, इस हेतु भी मुख-स्तम्भन प्रयोगों का साधन उचित रहता है।
___ यदि केवल मुख-स्तम्भन से काम न चले तो शत्रु को कष्ट देने, उसे अपमानित करने अथवा अन्य प्रकार से पीड़ित करने के प्रयोगों का साधन करना चाहिए।
किसी छोटे से अपराध के लिए बड़े दण्ड देने वाले मन्त्रादि का प्रयोग करना उचित नहीं रहता। शत्रु का व्यवहार जैसा हो, उसी के अनुरूप उसे सामान्य अथवा कठोर दण्ड देने वाले मन्त्र का प्रयोग करना ही ठीक है।
शत्रु-नाशक यन्त्र-मन्त्र
आगे प्रदर्शित यन्त्र को भोजपत्र के ऊपर हल्दी तथा हरताल से लिखें। प्रदर्शित यन्त्र के मध्यभाग में जहाँ 'देवदत्त' लिखा हआ है, वहाँ साध्य-शत्रु का नाम लिखें।
लेखनोपरान्त यन्त्र को किसी एकान्त स्थान पर रख दें तो उसे बहुत हानि पहुँचती है।
For Private And Personal Use Only