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शावर तन्त्र शास्त्र | १६७ सर्वाङ्ग (सम्पूर्ण शरीर) का रेणु पृथ्वी को धूलि से स्पर्श कराने से अर्थात् पृथ्वी की धूलि में लोट जाने से बाघ से रक्षा होती है।
मन्त्र इस प्रकार हैमन्त्र-“महादेव का कुक्कर लुटै लुटै कान मोरे निकट आवहु सुनि आवं लोहनपह पाउ रक्षा करें श्री गोरखराउ ।"
बाघ बराने का मन्त्र (३)
मन्त्र---"ॐ सत्य माता शंकर पिता शंकर किलइ चारिउ दिशा
जहाँ जहाँ मैं शंकर जाइ, तहाँ तहाँ मेरी किंकर जाइ जहाँ जहाँ मेरी दीठि तहाँ-तहाँ मेरी मूठि, जहाँ जहाँ मेरी नाद को शब्द सुनि आवे हो नरसिंह वोर माता बाधेश्वरी को दूध हराम कर कहौ कवन कवन किलोवानपुर्वां न पुगलो और शार्दूल केशरि तेंदुवा सोनहार अधिआगाधिआ अटिआर दूदि आर हरिआर काठिपठि पराधिता चलि घेरिये ते नह्नि आरे अवनि किलौ नारसिंह वीर किलै कछु कवन कवन किलौगाइका जाया भद्र सिक जाया भेड़ी का जाया घोड़ी का जाया छेरी का जाया दुइयावची पावक घाउ लागइ शिव महादेव को जटा के घाव लागे पार्वती के वीर चूके हाँके हनुमन्त बरावे
भीमसेनि मन्तो बाँधे जो वाये सीम।" विधिमन्त्र संख्या २ के अनुसार ।
बाघ बराने का मन्त्र (४)
मन्त्र--"आरापुरवारा परवत पर बारी जहाँ बोइक पसारी
जाको तेगोरानी रानी ताकी बनाई जा रीति के बांधौ बाघ बोलाई एही वन छाँड़ि दूसरे वन देखि परीक्षा होइ तौ
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