Book Title: Shavar Tantra Shastra
Author(s): Rajesh Dikshit
Publisher: Deep Publications

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Page 277
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ | जावर तन्त्र शास्त्र इन २७ योगों में से केवल १५ योग ही सिद्धिप्रद हैं-शिव, ब्रह्मा, इन्द्र, सुकर्मा, साध्य, शुक्ल, घर्षण, वरीयान, ध्रुव, सौभाग्य, शोभन, धृति, वृदि, प्रीति और आयुष्मान। कुलाकुल विचार - तत्व आकाश वायू अग्नि ___ जल पृथ्वी ऋ ऋ औ उऊ औ ग घि झ द ज ड द ब ध . भ ल व | व स ण ल ल अंङ | अ आ ए | इ ई ऐ ख न म श क च ट त छठ थ फ ह प य ष । रक्ष अक्षर उक्त सारिणी में साधक के नाम का प्रथमाक्षर एवम् मंत्र का प्रथमाक्षर मिलाकर देखें कि कौन से खाने में है। यदि दोनों अक्षर एक ही खाने में हों तो स्व कुल के कहलाते हैं अन्यथा 'अ कुल' के कहे जाते हैं। उदाहरणार्थ-मदन मोहन नामक साधक 'शन्नोदेवी' शब्द से प्रारम्भ होने वाला मंत्र ग्रहण करना चाहता है तो साधक के नाम का प्रथमाक्षर 'म' और मंत्र का प्रथमाक्षर 'श' दोनों एक ही खाने में [अर्थात आकाश तत्व तीसरे खाने में] में है अतः स्व कूल है अर्थात साधक और मंत्र दोनों में प्राकृतिक समानता है, ऐसा मंत्र शुभ फल देता है। यदि मंत्र और साधक का कुल अर्थात एक ही तत्व न मिले तो 'मित्र तत्व' का मंत्र ग्रहण करें अर्थात् ऐसा मंत्र ग्रहण करें, जिसका प्रथमाक्षर मिश तत्व के खाने में लिखे हुये अक्षरों से मेल रखा जाए। जल तत्व और वायु तत्व का मित्र पथ्वी तत्व है। वायु का अग्नि मित्र है । आकाश सभी का मित्र है। वायु और पृथ्वी शत्रु हैं इसी प्रकार अग्नि के शत्रु जल एवम् पृथ्वी तत्व है। निषिद्ध समय बादल के गरजते समय भूकम्प के समय, संध्या के समय, उल्कापात के समय, मंत्र ग्रहण करने का निषेध है। For Private And Personal Use Only

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