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शावर तन्त्र शास्त्र | २७७ ... षष्ठी और त्रयोदशी तिथियों में विष्णु मंत्र नहीं ग्रहण करना चाहिए। विशिष्ट समय
_भादों के दोनों पक्षों की षष्ठी व जन्माष्टमी, आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तथा अष्टमी; कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी, चैत्र की काम चतुर्दशी तथा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, वैशाख की अक्षय तृतीया तथा शुक्ल पक्ष की एकादशी, ज्येष्ठ. की दशमी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, आषाढ़ की शुक्ल पक्ष की पंचमी, श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी वं एकादशी, मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की षष्ठी, पौष की चतुर्दशी, माध की शुक्ल पक्ष की एकादशी, फागुन की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथियाँ मंग ग्रहण के लिए शुभ हैं।
सोमवती अमावस्या, मंगलवारी चतुर्दशी और रविवारी सप्तमी भी अच्छी तिथियाँ हैं।
संक्रान्ति के समय, ग्रहण के समय तथा मन्वन्तरा तिथियां भी मंत्र ग्रहण के लिए शुभ हैं।
शुद्ध मन्त्र-नृसिंह, बाराह, सूर्य, काली, दुर्गा, तारा, कमला, धूमावती, बगला, भुवनेश्वरी, शीलवाहिनी, मातंगी, त्वरिता, बाला, छिन्नमस्ता, कामाख्या, अन्नपूर्णा, वाग्देवी (सरस्वती) के मंत्र स्वयं शुद्ध हैं। इसी प्रकार प्रसाद बीज मन्त्र "हो", स्वप्न में प्राप्त मन्त्र, स्त्री गुरु द्वारा दिया गया मंत्रा, बीस अक्षर से अधिक का मन्त्रा, तीन अक्षर वाला मन्त्र तथा वेद विहित मंत्र, के शोधन की आवश्यकता नहीं होती। यह सभी स्वयं शुद्ध
गुरु मंत्र का चयन
अभी तक हमने साधारण मंत्रों के चयन की विधियों का वर्णन किया है; अब गुरु मंत्र के चयन को विधियों का उल्लेख करते हैं। गुरु मंत्र का अर्थ जन साधारण 'गुरु द्वारा दिया गया मंत्र' समझते हैं। इसमें संदेह नहीं कि 'गुरु मंत्र' गुरु द्वारा ही दिया जायगा परन्तु यह भी सही है कि 'गुरु मंत्र' देने वाला व्यक्ति हो 'गुरु है। अब आपकी समझ में सामान्य मंत्र और गुरु मंत्र में भिन्नता स्पष्ट होने लगेगी।
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