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ध्यान
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शावर तन्त्र शास्त्र | २२१
-" कर कलित कपालं कुण्डली दण्डपाणीऽस्तुरग तिमिर नीलो व्याल यज्ञोपवीतः । क्रतु समय सुरच्च विघ्न विच्छेद हेतु जयति वटुकनाथ सिद्धि दे साधकानाम् ।”
634.
प्रयोग-विधि
सिन्दूर का चौका लगाकर उसमें एक त्रिकोण यन्त्र बनायें । यन्त्र के ऊपर कोण में 'ॐ' वाम कोण में 'कु' तथा दक्षिण कोण में 'वं' तथा मध्य में 'ह्रीं' लिखें । 'ह्रीं' के नीचे साधक अपना नाम लिखें ।
उक्त विधि से बनने वाले यन्त्र के स्वरूप को नीचे के चित्र में प्रदशित किया गया है
ॐ
कब
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देवदत्तः
( वटुक - पूजन यन्त्र)
यन्त्रस्थ 'ह्रीं' अक्षर के ऊपर दीपक रक्खें। फिर संकल्प, न्यास तथा ध्यान करके आवाहान आदि षोडश उपचारों से पूजन करें । यन्त्र में जहाँ 'ॐ' लिखा है, वहाँ तेल में तले हुए उड़द के बड़े रक्खें । जहाँ 'व' लिखा है, वहाँ दही तथा जहां 'कु' लिखा है, वहाँ गुड़ रक्खें। थोड़ी सी सामग्री अछूती अलग से भोग में रखनी चाहिए ।
बड़े, दही और गुड़ मिलाकर रक्खें । वटुक के भोग की पाँच वस्तुएँ
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होती हैं- बड़े, दही, गुड़, शराब तथा भुनी हुई छोटी मछली ।
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