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२६४ ! शावर तन्त्र शास्त्र कहा है, जो स्वयं तरंगोत्पादक' होता है । जैसे रेडार के अन्दर ट्रान्समीटर तरंगोत्पादक होता है। यह तरंगें यदि किसी विशेष दिशा की ओर प्रसारित न की जाये तो व्यक्ति के चारों ओर एक घेरे में फैल जाती हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे कि एक टार्च के ऊपर से उसका रिफ्लक्टर उतार देने से बल्ब का प्रकाश इतना कम होता है कि पास पड़ी हुई वस्तु भी कठिनाई से दिखाई दे पाती है क्योंकि टाचं का प्रकाश चारों ओर बिखर जाता है। यही प्रकाश जब रिफ्लेक्टर लगाकर एक विशेष दिशा की ओर फोकस किया जाता है तो बहुत दूर की वस्तु भी हमें स्पष्ट दृष्टिगोचर हो जाती है । जिस तरह से टार्च में प्रकाश-शक्ति है, उसी तरह से व्यक्ति मात्र में "आत्मिक शक्ति" है इसे फोकस करना सीखने के लिए Concentration एकाग्रता (ध्यान) का अभ्यास करना होता है । एकाग्रता हमारी जितनी अच्छी होगी, आत्मिक शक्ति उतनी ही अच्छी फोकस हो सकेगी। यदि आपकी टार्च का फोकस यन्त्र अर्थात रिफ्लेक्टर चमकदार न हो तो टार्च का प्रकाश कैसा होगा, यह आप समझ ही सकते हैं। यदि Concentration एकाग्रता (ध्यान) के इष्टअभ्यास द्वारा अपनी आत्मिक तरंगों को फोकस करना सीख लेने के पश्चात प्रश्न उठता है कि फोकस किये हुयं शक्तिपूज को विशेष दिशा में कैसे प्रसारित किया जाय ? यह दिशा बोध 'इष्ट' की कल्पना मूति द्वारा होता है। इष्ट से तात्पर्य है --एक विशेष कल्पना मूर्ति, जिसके ध्यान से आत्मिक तरगों को एक विशेष दिशा मिलती है। यदि यह 'इष्ट' आपकी 'मां है तो आपकी मां की ओर आपकी आत्मिक-शक्ति तरंगें प्रवाहित हो जायेंगी। यदि 'इष्ट' बहन है तो उस ओर तरंगें जा टकरायेंगी। यदि कोई और दूरस्थ वस्तु है तो तरगें उसकी ओर पहुच जायेंगी और उसकी कार्य प्रणाली में अवरोध पैदा करेंगी (लोक-व्यवहार में भो आपने किसी की आँख फड़कने पर या हिचकियाँ आने पर यह कहते सुना होगा कि अमुक व्यक्ति का नाम लेने पर ही हिचकियाँ बन्द हुई हैं, वही मुझे याद कर रहा है-यह इन्हीं 'जी-रेज' की करामात होती है)। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति विशेष के रूप का ध्यान करने से तरंगें उस दिशा में गमन करने लगती हैं। इसी सिद्धान्त को थोड़ा
और आगे बढ़ाने पर हम देखेंगे कि विभिन्न मूर्तियों की कल्पना करके हम • अपनी तरंगों को मंगल, शुक्र आदि विभिन्न ग्रहों की ओर प्रसारित कर सकते हैं । जैसा कि मैंने रडार प्रणाली के सिद्धान्त के बारे में कहा था-इन ग्रहों से टकराकर लौटने वाली तरंगों का उपयोग हम अपने लाभ के लिए कर सकते हैं। यह विशेष मूर्ति (इष्ट) वास्तव में पृथ्वी पर पैदा हुए हों, यह आवश्यक नहीं है। यहाँ पर आवश्यक केवल इतना है कि किस इष्ट का ध्यान करने से हमें क्या परिणाम मिलता है ? जैसे हनुमान का ध्यान करने
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