Book Title: Shavar Tantra Shastra
Author(s): Rajesh Dikshit
Publisher: Deep Publications

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Page 273
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 2 २७२ | शावर तन्त्र शास्त्र बीज मन्त्र, आदि शूद्र और स्त्री को फलदायी नहीं होंगे। इनके लिये शिव, दुर्गा, गणेश, सूर्य, गोपाल आदि के मन्त्र अधिक उपयुक्त रहेंगे परन्तु उसमें प्रणव तथा स्वाहा न हो, अन्यथा स्त्री और शूद्र में सेवा भाव कम हो जायगा और स्वेच्छाचारिता में वृद्धि हो जायगी, जिससे इनके कर्तव्य कर्म में अवरोध प्रारम्भ हो जायेंगे । ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र वाली बात इन वर्णों के शास्त्रीय कर्तव्य कर्म का ध्यान रखते हुए ही कही गई है। किसी को छोटा बड़ा प्रदर्शित करने के उद्देश्य से नहीं । यदि कोई ब्राह्मण शूद्र कर्मी हो गया है तो उसके लिये शूद्र वाला नियम लागू होगा, ब्राह्मण वाला नहीं । मध्यकाल में कुछ अज्ञानियों द्वारा मन्त्रों में 'ॐ' और स्वाहा जोड़जोड़ कर अधिकतर मन्त्रों को दूषित कर दिया गया है। यहाँ तक कि षड़क्षर और नव- अक्षर मन्त्रों में 'ॐ' आदि जोड़कर मन्त्राक्षरों की संख्या में ही दोष पैदा कर दिया गया है । यह सभी बातें अविलम्ब संशोधन माँगती हैं। यह बड़े हर्ष की बात है कि विश्व की आधुनिकतम सामाजिक संस्था "रिफोर्मर्स ऑफ ह्यूमैनिटी एण्ड हैल्थ ( संस्कृति एवं आरोग्य प्रवर्तिका) ने योग और आत्म ज्ञान, मन्त्र-तन्त्र में शोध कार्य करने की ओर ध्यान दिया है और 'इन्स्टीट्यूट ऑफ कास्मिक योगा एण्ड मैटाफिजीकल रिसचेंज' (आई० सी० एम०) की स्थापना की है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिंग विचार - जिन मन्त्रों के अन्त में "हूं फट् " आत्म है वह पुल्लिंग मन्त्र होते हैं । जिनके अन्त में "स्वाहा” हो वह स्त्रीलिंग मन्त्र होते हैं और जिनके अन्त में " नमः" आये वह नपुंसक लिंग । 1 राशि विचार - नीचे कोष्ठकों में राशि के नाम और उनके साथ कुछ अक्षर लिखे हैं । साधक अपने जन्म की राशि से, मंत्र के प्रथम अक्षर वाले कोष्ठक तक गिनें। जन्म राशि का ज्ञान न हो तो नाम राशि से गिनें । उदाहरणार्थ साधक की राशि सिह है और 'न' अक्षर से प्रारम्भ होने वाला मंत्र वह लेना चाहता है, जो कि सिंह राशि के खाने से आठवें खाने में पड़ता है । आठवाँ खाना मृत्यु सूचक है अतः 'मंत्र' अशुभ रहेगा। स्थान सूची इस प्रकार है - प्रथम स्थान को लग्न द्वितीय को धन, तृतीय को भाई, चौथे को बन्धु, पांचवें को पुत्र, छठवें को शत्रु, सातवें को स्त्री, आठवें को मृत्यु नवमें को धर्म, दसवें को कर्म, ग्यारहवें को आय और बारहवें को व्यय का स्थान माना गया है। जिस कोष्ठक में जो स्थान आता है, उस सिद्धि को प्राप्त For Private And Personal Use Only

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