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शाबर तन्त्र शास्त्र | २७३ करने के लिए उस कोष्ठक में लिखे अक्षरों से प्रारम्भ होने वाले मंत्रों का जाप ही उपयुक्त रहेगा। उदाहरणार्थ-सिंह राशि वाला साधक आय वृद्धि हेतु कोई मंत्र जपना चाहता है तो सिंह राशि के स्थान से ग्यारहवाँ स्थान गिनें जो कि तुला राशि का स्थान है, जिसमें "क ख ग घ ङ" अक्षर हैं अतः इन अक्षरों से प्रारम्भ होने वाला "आयवर्घक-मंत्र" ऐसे साधक के लिए उपयुक्त रहेगा।
मीन
कुम्भ ऋटल
अ आ इई / पफवगन
मिशन उऊऋत
मेष . यरलब/
कर्क ए ऐ
मकर
तथ द धन
धडा ओऔ
कखगघड. डढचा कन्या
वाश्चक अंश ष स ह क्षज्ञ इस प्रकार आप देखेंगे कि छठा, आठवाँ और बारहवाँ स्थान कभी भी शुभ नहीं हैं, घातक हैं।
नक्षत्र विचार-नक्षत्र गणना की कई विधियाँ हैं । पाठकों के लाभार्थ सरलतम विधि यहाँ दे रहे हैं। साधक के जन्म नक्षत्र और मन्त्र के प्रथम अक्षर का गण नक्षत्र सारिणी में देखकर मिलायें-- यदि जन्म नक्षत्र और प्रथमाक्षर दोनों के गण मिल जाते हैं तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है। वर्ना देव-गण के जन्म नक्षत्र वाला देव-गण वाले अक्षरों से प्रारम्भ होने वाले मन्त्र को ग्रहण करें। राक्षस-गण के जन्म नक्षत्र वाला राक्षस-गणं में लिखे अक्षरों से प्रारम्भ होने वाले मंत्रों को सिद्ध करें। देव-गण जन्म नक्षत्र वाला नर-गण में लिखे अक्षरों से प्रारम्भ होने वाले मंत्र को ले सकता है, परन्तु यदि साधक के जन्म नक्षत्र का गण राक्षस है और मंत्राक्षर का गण नर हो तो विनाशकारी है। इसी प्रकार देव और राक्षस गण हों तो भी अशुभ है।
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